Hera Panchami 2023: हेरा पंचमी भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. रथ यात्रा शुरू होने के पांचवे दिन हेरा पंचमी का उत्सव मनाया जाता है. यहां हेरा (कहीं-कहीं होरा भी कहते हैं) का आशय है 'देखना' और पंचमी यानी 'पांचवा दिन'. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने के पांचवे दिन देवी लक्ष्मी की यात्रा शुरू होती है. ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा का अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाने के दौरान देवी लक्ष्मी कहां से आ गईं? आज 23 जून 2023 को हेरा पंचमी के अवसर पर जानेंगे कि इस दिन देवी लक्ष्मी की यात्रा कहां और क्यों शुरू की जाती है. यह भी पढ़े: Paush Purnima 2023: कब है पौष पूर्णिमा? जानें तीन विशेष योगों में श्रीहरि, माँ लक्ष्मी, सूर्य एवं चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व एवं पूजा विधि एवं मुहूर्त!
भगवान जगन्नाथ से क्यों रुष्ठ हुईं देवी लक्ष्मी?
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ जब अपने भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, तब भगवान जगन्नाथ देवी लक्ष्मी से वादा करते हैं कि पांचवे दिन वह वापस आ जायेंगे. पांचवे दिन देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की प्रतीक्षा करती हैं, लेकिन जब वह वापस नहीं आते हैं, तब देवी लक्ष्मी स्वयं पालकी पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर रवाना होती हैं. यहां कुछ ऐसी बातें होती हैं कि देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से रुष्ठ होकर श्रीमंदिर वापस आ जाती हैं.
ऐसे होता है हेरा पंचमी अनुष्ठान!
आषाढ़ शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन श्री मंदिर से देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को परिधानों एवं रंगीन फूलों से अलंकृत किया जाता है. यहां से उन्हें उठाकर गर्भगृह के दक्षिण-पूर्व स्थित बरगद के पेड़ के पास रखी पालकी में बिठाया जाता है. इसके बाद पालकी को सेवकों द्वारा कंधों पर रखकर बाजे-गाजे के साथ जुलूस के रूप में गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. देवी लक्ष्मी के साथ एक और पालकी चलती है, जिसमें लक्ष्मी जी की खूबसूरत छतरी, पंखा, जल, प्रसाद एवं अन्य आवश्यक वस्तुएं रखी होती हैं. देवी लक्ष्मी की पालकी के पीछे चलने वाले श्रद्धालु हेरा पंचमी का रौद्र गीत गाते हैं. यह गीत वस्तुतः देवी लक्ष्मी की नाराजगी का प्रतीक होता है.
गुंडिचा मंदिर के सामने भगवान जगन्नाथ के रथ के पास देवी लक्ष्मी की पालकी रुकती है. गुंडिचा मंदिर के पुजारी देवी लक्ष्मी की आरती उतारते हैं. संध्या धूप-दीप के पश्चात देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर में प्रवेश कर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के पास पहुंचती हैं. मंदिर के पुजारी भगवान जगन्नाथ के गले का एक हार देवी लक्ष्मी की प्रतिमा रखते हैं. इसके बाद देवी लक्ष्मी मंदिर से बाहर आती हैं. यहां मंदिर के ट्रस्टी देवी को दही चढ़ाकर पूजा करते हैं. देवी लक्ष्मी एक बार पुनः जगन्नाथ के रथ के सामने आती हैं. अनुष्ठान के अंत में परंपरानुसार भगवान जगन्नाथ के रथ का एक हिस्सा टूट जाता है, तब देवी लक्ष्मी क्रोध में आकर श्रीमंदिर वापस लौट जाती हैं.