कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला गोपाष्टमी मूलतः गाय-बछड़े एवं भगवान कृष्ण को समर्पित पर्व है. यह पर्व मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण की नगरी ब्रज, मथुरा और वृंदावन में मनाया जाता है, जो इंद्रदेव द्वारा ब्रज में की गई मूसलाधार बारिश से गोकुल वासियों और गाय की रक्षा की स्मृति कराता है, और उनकी रक्षार्थ भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था. इस दिन गायों और बछड़ों को सजाया जाता है और विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है. इस साल गोपाष्टमी 20 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं गोपाष्टमी व्रत का महात्म्य, तिथि एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में..
गोपाष्टमी पर्व का महत्व
मान्यता है कि कार्तिक माह प्रतिपदा को ब्रजवासियों द्वारा इंद्रदेव की पूजा बंद करने से इंद्र ने क्रोधित होकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश करवा दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने आठ दिन तक गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा किया. इसी समय इंद्रदेव ने अपने योगबल से जाना कि श्रीकृष्ण नारायण का स्वरूप हैं, तब उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी. इसके बाद कामधेनु ने अपने दूध से भगवान कृष्ण का अभिषेक किया था. इसलिए भी श्रीकृष्ण का नाम गोविंद पड़ा. लोगों की आस्था है कि गोपाष्टमी के दिन भगवान विष्णु एवं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन में सुख एवं शांति आती है, किसी भी तरह के संकटों एवं समस्याओं से मुक्ति मिलती है.
गोपाष्टमी 2023 मूल तिथि एवं समय
अष्टमी आरंभः 05.21PM (20 नवंबर 2023)
अष्टमी आरंभः 03:16 PM (21 नवंबर 2023)
यह पूजा संध्याकाल में होने के कारण 20 नवंबर 2023 को मनाया जायेगा.
राहुकालः 08.12 AM से 09.36 AM तक (राहुकाल में पूजा आदि नहीं किये जाते)
अभिजीत मुहूर्तः 12.02 PM से 1246 PM तक (पूजा के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त)
गोपाष्टमी पूजा-विधि
गोपाष्टमी के दिन सुबह बछड़े के साथ गाय को स्नान करें. इसके बाद घर की अच्छी तरह सफाई करके स्वयं स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. गोपाष्टमी व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करें. गाय-बछड़े के पैरों में घुंघरू बांधकर फूलों की माला पहनाएं, रोली-चंदन से तिलक करें. गुड़ और हरा चारा खिलाएं. अब पूजा स्थल पर श्रीकृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत एवं गंगाजल से स्नान कराएं. धूप-दीप प्रज्वलित कर रोली, चंदन, तुलसी आदि अर्पित करने के बाद भोग में खीर, पूड़ी, सब्जी, और हलवा चढ़ाएं. निम्न मंत्र पढ़ें,
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्
यदि घर में गाय नहीं हैं तो गौशाला में यह अनुष्ठान कर सकते हैं, उन्हें हरा चारा खिला सकते हैं एवं पूजा कर सकते हैं. इसके बाद गाय-पालकों को दक्षिणा अवश्य दें. इस दिन गायों की पूजा करने से तमाम कष्ट नष्ट होते हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
भविष्य पुराण में गाय का महात्म्य
भविष्य पुराण में गाय माता अर्थात लक्ष्मी के रूप में वर्णित की गई हैं. उनके पृष्ठ भाग में ब्रह्म का वास, गले में विष्णु, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षि गण, पूंछ में अनंत नाग, खुरों में समस्त पर्वत, गौ-मूत्र में गंगा आदि नदियां, गोमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित बताया गया है. इसलिए हिंदू धर्म में गाय को अति पूजनीय माना जाता है.