Gandhi Jayanti 2020: भारतीय राजनीति में गांधी-नेहरू (Gandhi-Nehru) एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं. नेहरू को आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनने का गौरव गांधीजी के कारण प्राप्त हुआ था. अंग्रेजी हुकूमत के बीच भी नेहरू की प्रतिष्ठा को प्रज्जवलित करने में गांधीजी ने कई बार अहम भूमिका निभाई. हालांकि दोनों के व्यक्तित्व, उनकी सोच, उनके सिद्धांत कभी एक नहीं रहे. उनके बीच मतभेद, विवाद और अंसतोष बार-बार उभर कर आये, लेकिन इसके बावजूद इन दोनों धुरंधर राजनीतिज्ञों के रिश्तों में कभी दरार पैदा नहीं हुई. गांधीजी की 151 जयंती (Gandhi Jayanti) पर हम गांधी-नेहरू के खट्टे-मीठे रिश्तों पर बात करेंगे.
गांधी और नेहरू दोनों सुशिक्षित हैं, दोनों ने विदेशों में बैरिस्टर की शिक्षा हासिल की, दोनों ने ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने के लिए तमाम संघर्ष एवं आंदोलन किये. नेहरू गांधीजी को अपना गुरू मानते थे. लेकिन दोनों के व्यक्तित्व और विचारों में जमीन आसमान का अंतर था. गांधीजी को भारतीय सांस्कृतिक विरासत से लगाव था, तो नेहरू पर हैरो और कैम्ब्रिज के संस्कार हावी थे. यह भी पढ़ें: Gandhi Jayanti 2020 Virtual Celebration Ideas: कोरोना संकट के बीच गांधी जयंती को बनाएं यादगार, इन यूनिक आइडियाज के साथ वर्चुअल तरीके से करें सेलिब्रेट
इस तरह 'गांधी के नेहरू' बनें जवाहर लाल
गांधीजी हर किसी से काफी अपनेपन और प्यार से मिलते और जुड़ते थे. लखनऊ में नेहरू से पहली मुलाकात में ही गांधीजी ने नेहरू की क्षमता भांप ली थी, हांलाकि नेहरू थोड़े घमंडी थे, लेकिन गांधीजी ने उनकी इस प्रवृत्ति पर ध्यान नहीं दिया और कांग्रेस से जोड़ने के बाद उन्होंने नेहरू से खूब भागदौड़ करवाई. फाइंडिंग टीम का सक्रिय सदस्य बनाकर उन्हें तमाम देशी-विदेशी दौरे करवाये, कई विवादों में भी लिप्त कराया, जिसके लिए नेहरु को जेल भी जाना पड़ा. दरअसल गांधीजी नेहरू को जन-जन से जोड़ना चाहते थे. काफी ऐशो-आराम से पले-बढ़े नेहरू पता नहीं कैसे गांधीजी के मोहपाश में बंधते चले गये. उन्हें पता ही नहीं चला कि उन्होंने अपने जीवन की कुंजी को कब गांधीजी को सौंप दिया. कई बार गांधीजी के कुछ विचारों ने नेहरू को उद्वेलित भी किया, वे विरोध की तख्ती लेकर गांधीजी के पास भी गये, लेकिन जैसे ही वे गांधीजी के करीब पहुंचते, उनके जुबान पर ताले लग जाते थे.
विवादों के बावजूद गांधीजी के विचारों को नजरंदाज नहीं कर सके नेहरू
गांधीजी का जादू ताउम्र नेहरू पर कायम रहा. हांलाकि कुछ ऐसे भी मौके आये, जब नेहरू ने गांधीजी का मूक विरोध किया. ऐसा ही एक वाकया था, 1926-27 के दौरान गांधीजी भारत, बर्मा और श्रीलंका के राजनीतिक भ्रमण में व्यस्त थे. नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का सेहत लगातार बिगड़ता जा रहा था. अंततः कमला के इलाज के सिलसिले में नेहरू को करीब पौने दो वर्ष युरोप में रहना पड़ा. इस विदेश प्रवास के दौरान नेहरू कम्युनिस्ट शासित सोवियत रूस भी गए.
कहते हैं कि इन पौने दो वर्षों के विदेश प्रवास में गांधी-प्रभाव से रहित नेहरू अपने तरीके और विचारों के साथ लोगों से जुड़े. नेहरू ने स्वतः विकास पर खूब कार्य किया. इसके बाद उन्होंने गांधीजी की हर बात को आंख बंदकर नहीं माना. इस बात का जिक्र नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में भी किया है, जिसे उन्होंने 1942-1945 के दौरान जेल में लिखी थी. लेकिन उन्होंने यह भी माना कि निर्भयता और सत्य का यह स्वरूप उन्होंने गांधीजी से ही सीखा था. भारत छोड़ो आंदोलन के बाद के दौर में भी दोनों के बीच भावी भारत के स्वरूप को लेकर मतभेद रहे, जो कभी-कभी मुखर भी हुए, लेकिन दोनों के बीच भावनात्मक जुड़ाव ऐसे थे कि लड़ने-झगड़ने के बावजूद आपसी जुड़ाव और स्नेह में कभी कमी नहीं आई. यह भी पढ़ें: Gandhi Jayanti 2020 Dress Ideas: गांधी जयंती पर अपने बच्चों को महात्मा गांधी की तरह करें तैयार, वर्चुअल फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता के लिए काम आएंगे ये लास्ट मिनट टिप्स (Watch Videos)
गांधीजी को ही नेहरू के निजी मामलों में दखलंदाजी का अधिकार था?
गांधीजी की संगत में आने के बाद नेहरू में जो सबसे बड़ा बदलाव आया था, वह था स्वावलंबी बनना. वे पिता पर भार नहीं बनना चाहते थे. उनकी यह दलील मोतीलाल को रास नहीं आ रही थी. उन्होंने गांधीजी को पत्र लिखा. गांधीजी ने नेहरू को पत्र के माध्यम से समझाने की कोशिश की. 'मैं समझता हूं कि तुम इन सब चीजों को धैर्य लोगे. आपके पिताजी नाराज हैं. मैं या आप उनकी नाराजगी को बढ़ने का मौका न देना. तुम उनसे जी खोलकर बात करो, लेकिन उन्हें नाराज करने वाली बात मत करना, क्योंकि उन्हें दुःखी देखकर मुझे दुख होता है. पत्र में गांधी ने यह भी लिखा कि अगर तुम्हें जरूरत है तो कुछ रुपयों का बंदोबस्त करूं? तुम अपनी कमाई के लिए कोई काम ले लो. तुम्हें अपना खर्चा स्वयं निकालना चाहिए. भले ही तुम पिताजी के घर में रहो.’इसी तरह इंदिरा गांधी के स्कूल जाने के मामले में भी जवाहरलाल और मोती लाल के बीच विवाद उठा था, तब दोनों ने गांधी जी से मध्यस्थता करवा कर अमुक मसले का हल निकाला.