Field Marshal KM Cariappa Jayanti 2020: फील्ड मार्शल केएम करियप्पा की 121वीं जयंती आज, जानें भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ से जुड़े रोचक तथ्य
फील्ड मार्शल केएम करियप्पा Photo Credits: Indian Army)

Field Marshal KM Cariappa Jayanti 2020: केएम करियप्पा (Field Marshal KM Cariappa) का नाम भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-Chief) के तौर पर दर्ज है. आज फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा (Field Marshal Kodandera Madappa Cariappa) की 121वीं जयंती मनाई जा रही है. केएम करियप्पा पहले ऐसे भारतीय थे, जिन्हें भारतीय सेना की आजादी के दिन ही आजाद भारतीय सेना की कमान सौंपी गई थी. उन्होंने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ जनरल सर रॉय बुचर से सेना की कमान संभाली थी. तब से हर साल 15 जनवरी के दिन को भारत में सेना दिवस (Army Day) के रूप में मनाया जाता है. उनका जन्म 28 जनवरी 1899 को मदिकेरी, कोडागु में हुआ था जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा है.

फील्ड मार्शल करियप्पा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मदिकेरी से और चेन्नई के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से उच्च शिक्षा ग्रहण की. करियप्पा साल 1919 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे और उन्हें बॉम्बे (मुंबई) में 88वीं कर्नाटक इन्फैंट्री में अस्थायी सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने भारतीय सेना को एक हाई प्रोफेशनल फोर्स के रूप में आकार देने और इसे एक राजनीतिक संगठन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

फील्ड मार्शल करियप्पा से जुड़े रोचक तथ्य

  • 9 सितंबर 1922 को उन्हें स्थायी कमीशन दिया गया और साल 1927 में कैप्टन के पद पर उन्हें पदोन्नत किया गया.
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फील्ड मार्शल करियप्पा ने साल 1941-1942 में इराक, ईरान व सीरिया और फिर 1943-1944 में बर्मा में सक्रिय रूप से सेवा दी.
  • साल 1942 में उन्हें फतेहगढ़ में नई 7वीं राजपूत मशीन गन बटालियन के सेकेंड-इन-कमांड के रूप में तैनात किया गया.
  • करियप्पा को बर्मा के बुथीदौंग (Buthidaung) में तैनात 26वें भारतीय डिवीजन में AQMG के तौर पर तैनात किया गया था, जिसने जापानियों को अराकन से पीछे धकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऑपरेशन के दौरान बहादुरी दिखाने के लिए उन्हें जून 1945 में ऑर्डर ऑफ द ब्रिटीश एंपायर (Order of the British Empire) से सम्मानित किया गया.
  • साल 1947 में करियप्पा ब्रिटेन के कैंबर्ली में इंपीरियल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग लेने के लिए चुने गए दो भारतीयों में से पहले भारतीय थे.
  • नवंबर 1947 में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नत होने के बाद करियप्पा को पूर्वी सेना कमाडंर के रूप में नियुक्त किया गया था.
  • उन्होंने साल 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना का नेतृत्व भी किया था.
  • करियप्पा ने भारतीय सेना में जाति, धर्म की बाधाओं को दूर करने के लिए 1949 में 'ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स' नाम से भारतीय सेना की एक यंत्रीकृत पैदल सेना रेजिमेंट को खड़ा किया. यह भी पढ़ें: Army Day 2020: जानें भारतीय सेना के लिए क्यों अहम है 15 जनवरी का दिन

करियप्पा की शादी मार्च 1937 में सिकंदराबाद में मुथु माचिया से हुई थी. उनके बेटे केसी करियप्पा को नंदा के रूप में भी जाना जाता है. वे भारतीय वायुसेना में शामिल हो गए और एयर मार्शल की रैंक तक पहुंच गए. साल 1953 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में काम किया. 28 अप्रैल 1986 को भारत सरकार ने करियप्पा को फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया. सैम मानेकशॉ के बाद वे भारतीय सेना के दूसरे फील्ड मार्शल थे.

साल 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान करियप्पा के बेटे को पाकिस्तान ने युद्धबंदी बना लिया था. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान (जिन्होंने 1945 में फील्ड मार्शल करियप्पा के अधीन कार्य किया था) ने उन्हें रिहा करने की पेशकश की थी. हालांकि फील्ड मार्शल करियप्पा ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा था कि उनके बेटे से पाकिस्तान अन्य युद्धबंदियों की तरह ही व्यवहार करे. गौरतलब है कि करियप्पा ऑर्थराइटिस और दिल की बीमारी से पीड़ित थे. साल 1991 में करियप्पा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और उन्होंने 15 मई 1993 को बैंगलोर कमांड अस्पताल में अंतिम सांस ली.