Diwali 2019 Naraka Chaturdashi: नरक जाने के भय से मिलती है मुक्ति, जानें शुभ मुहूर्त और पारंपरिक कथा
27 अक्तूबर को नरक चतुर्दशी मनाई जायेगी (File Photo)

Diwali 2019 Naraka Chaturdashi: कार्तिक मास (कृष्णपक्ष) की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है. इसे ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’ एवं ‘रूप चतुर्दशी’ के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है. चूंकि यह पर्व दीपावली से एक दिन पूर्व पड़ता है, इसलिए इसे ‘छोटी दीवाली’ भी कहते हैं. नरक चतुर्दशी के दिन सूर्यास्त के पश्चात एक दीप जलाया जाता है. इस दिन यमराज की पूजा करके अकाल मृत्यु से मुक्ति और अच्छी सेहत की कामना की जाती है.

नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर में मालिश की जाती है और पानी में चिचड़ी (एक आयुर्वेदिक पत्ती) का पत्ता डालकर स्नान करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से छुटकारा मिलता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार नरक चतुर्दशी 26 अक्टूबर 2019 को पड़ रहा है.

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क्या है शास्त्रोक्त नियम

दो अलग-अलग परंपराओं के अनुसार कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनायी जाती है. ‘

* कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्रोदय अथवा अरुणोदय (सूर्योदय से लगभग 1 घंटा 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. यद्यपि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है.

* यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि को अरुणोदय अथवा चंद्रोदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाया जायेगा, और अगर चतुर्दशी की तिथि चंद्रोदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए.

* नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व चंद्रोदय या अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग (मालिश)

और यम तर्पण करने की परंपरा है.

पूजा का विधान

नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व नदी में स्नान करने से पूर्व तिल्ली के तेल से पूरे शरीर की मालिश करते हैं. उसके पश्चात चिचड़ी के पत्ते को अपने सिर के चारों तरफ तीन बार घुमाएं. यहां बता दें कि नरक चतुर्दशी से पूर्व अहोई अष्टमी के दिन एक लोटा पानी भरकर रखा जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन इसी लोटे के जल को स्नान के पानी में मिलाकर स्नान करते हैं. कहते हैं कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है. स्नान करने के पश्चात दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करते हैं कि वे आपके सभी पापों के लिए क्षमा प्रदान करें. सायंकाल के समय यम के नाम से सरसों के तेल का एक दीप जलाकर घर के पिछवाड़े किसी स्थान पर रखकर वापस आ जाएं. ध्यान रहे पीछे मुड़कर न देखें. नरक चतुर्दशी को ‘रूप चतुर्दशी’ या ‘रूप चौदस’ भी कहते हैं. इसीलिए ‘रूप चतुर्दश’ के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से इंसान के सौंदर्य में निखार आता है. इसी दिन अर्धरात्रि के समय घर से व्यर्थ वस्तुओँ को घर से कहीं दूर फेंक देना चाहिए. इस परंपरा को दरिद्रता निःसारण कहा जाता है. कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन यानी मुख्य दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती हैं, इसीलिए घर से गंदगी और दरिद्रता की सारी चीजें घर से कहीं दूर फेंक देना चाहिए.

नरक चतुर्दशी का मुहूर्त

अभ्यंग स्नान का समय:

05:15:59 से 06:29:14 बजे तक

पारंपरिक कथाः

प्राचीनकाल में नरकासुर नामक एक राक्षस था. वह अपनी दैवीय शक्तियों से देवों और ऋषि-मुनियों को आए दिन परेशान करता रहता था. नरकासुर का अत्याचार इस कदर बढ़ा कि उसने देव एवं ऋषियों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया. नरकासुर के अत्याचारों से परेशान समस्त देव एवं ऋषि-मुनि श्रीकृष्ण के पास पहुंचे. श्रीकृष्ण जानते थे कि नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप प्राप्त है. श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से नरकासुर का वध कर 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया.

कहा जाता है कि बाद में ये सभी स्त्रियां भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार पटरानियां के नाम से जानी जाने लगीं. नरकासुर के संहार के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए. तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्योहार मनाने की परंपरा जारी है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.