Chhatrapati Shivaji Punya Tithi: शौर्य और चातुर्य के प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज! जानें उनके जीवन के 10 अनछुए एवं रोचक तथ्य!
Chhatrapati Shivaji Maharaj Punyatithi 2023 (Photo Credits: File Image)

आज देश भर में शिवाजी महाराज की 343 वीं पुण्यतिथि मनाया जा रहा है. अपने साहस और शौर्य के लिए प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी. भारतीय इतिहास में 19 फरवरी 1630 को माँ जीजामाता के गर्भ से जन्मे शिवाजी महाराज का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, जिसने भारत को विदेशी आतताइयों से बचाने के लिए पूरी जिंदगी देश के नाम कुर्बान कर दी. शौर्य और चातुर्य के प्रतीक शिवाजी जैसे नायक मुश्किल से मिलेंगे, जो मुट्ठी भर सेना के साथ अपने युद्ध-चातुर्य से लाखों मुगल सैनिकों को मात-दर-मात देते रहे. आइये जानें इस महानायक की 343 पुण्य-तिथि पर उनके जीवन से जुड़े 10 अनछुए एवं रोचक तथ्यों को...

1- शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को पुणे स्थित शिवनेरी किले में शाहजी की पत्नी जीजाबाई के गर्भ से हुआ था. उनके पिता ने दक्कन सल्तनत के तहत एक जनरल के रूप में काम किया था.

2- शिवाजी का नाम स्थानीय देवता शिवई के नाम पर रखा गया था. कुछ लोगों का मत है कि जीजामाता ने भगवान शिव के नाम पर शिवाजी का नामकरण किया था, सच नहीं है.

3- छत्रपति शिवाजी महाराज ने पहली बार मुगलों के खिलाफ साल 1656-57 में जब युद्ध लड़ा था, तब वे मात्र 26 वर्ष के थे. इस पहले ही युद्ध में शिवाजी ने मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और सैकड़ों घोड़ों पर कब्जा कर लिया था.

4- छत्रपति शिवाजी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वराज्य के स्लोगन को प्रमोट किया, जिसका चलन ब्रिटिश हुकूमत वाले भारत में खूब प्रचलित हुआ था

5- साल 1674 में उन्हें औपचारिक रूप से रायगढ़ के छत्रपति (सम्राट) के रूप में ताज पहनाया गया था, इसके बाद से उनके नाम से पूर्व छत्रपति शब्द ‘चस्पा’ हो गया

6- छत्रपति शिवाजी महाराज को अपनी हिंदू जड़ों एवं हिंदुत्व के प्रति काफी लगाव था, उन्होंने धर्म के सकारात्मक पहलुओं को एक नया जीवन दिया.

7- शिवाजी महाराज हर धर्म के प्रति सम्मान की भावना रखते थे, लेकिन भाषा के नाम पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया, उन्होंने उन दिनों के प्रचलित फारसी भाषा के बजाय संस्कृत और मराठी भाषा को बढ़ावा देने का काम किया.

8- शिवाजी ने सनातन धर्म को सर्वोपरि जरूर माना था, उन्होंने ताउम्र मुगल सेना का संहार किया, लेकिन जिस तरह उनकी सेना में बड़े-बड़े ओहदों पर मुसलमानों इब्राहिम खान, दौलत खान नौसेना में तो सिद्दी इब्राहिम को तोपखाने का प्रमुख नियुक्त किया, इससे लगता है कि वह धर्मनिरपेक्षता की मिसाल थे.

9- शिवाजी का निधन 3 अप्रैल 1680 को पेचिश की बीमारी से हुआ था. उस समय वह 52 वर्ष के थे. कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु को स्वाभाविक मानते हैं तो कुछ का मानना है कि शिवाजी को उनके परिवार के किसी सदस्य ने उन्हें जहर देकर मार दिया था.

10- इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि शिवाजी की मृत्यु के पश्चात उनकी सबसे बड़ी पत्नी पुतलाबाई भी उनके अंतिम संस्कार के समय ही सती हो गई थीं.