
Champak Dwadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष के 12वें दिन चंपक द्वादशी (Champak Dwadashi) का पर्व मनाया जाता है. द्वादशी तिथि को विष्णु द्वादशी (Vishnu Dwadashi) के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन हिंदू शास्त्रों में इस दिन भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के विभिन्न रूपों की पूजा करने का महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के कृष्ण रूप की पूजा करने से भक्त को अच्छे फल मिलते हैं और उसे सुख, धन और वैभव की प्राप्ति होती है. चंपक द्वादशी को राघव द्वादशी एवं राम लक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के अवतार श्री राम और श्री लक्ष्मण की मूर्तियों की भी पूजा की जाती है. राम और लक्ष्मण की पूजा करने के बाद घी से भरा घड़ा दान किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में विस्तार से... यह भी पढ़ें: Rukmini Vivah 2025: भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कब और क्यों किया था? जानें रुक्मिणी विवाह पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा इत्यादि के बारे में!
चंपक द्वादशी 2025: तिथि और समय
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी प्रारंभः 04.47 AM (07 जून 2025 शनिवार)
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी समाप्तः 07.17 AM, (08 जून 2025, रविवार)
उदया तिथि के अनुसार 7 जून 2025 को चंपक द्वादशी का व्रत रखा जाएगा.
चंपक द्वादशी का महत्व
मान्यता है कि चंपा द्वादशी के दिन भगवान कृष्ण की चंपा के फूलों से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को चंपा द्वादशी की कथा सुनाई थी. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था, जो व्यक्ति ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हरे राम, हरे कृष्ण का जाप करते हुए व्रत करता है, विधि-विधान से पूजा करते हैं, उन्हें उसे एक हजार गायों के दान के बराबर फल प्राप्त होता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और जीवन के बाद उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है.
चंपक द्वादशी 2025: अनुष्ठान
चंपक द्वादशी का पर्व मुख्य रूप से पुरी (ओड़िशा) स्थित जगन्नाथ मंदिर में अत्यंत उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है. लक्ष्मी नारायण, मदन मोहन और रुक्मिणी के स्वागत उत्सव के सम्मान में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलदेव और बहन सुभद्रा को बेहद खुशबू वाली चंपा के फूलों से सजाया जाता है. इस महोत्सव की शुरुआत गुआली उत्सव से होती है, इस दिन विशेष रिवाजों के तहत सकल धूप एवं भोग मंडप अनुष्ठानों के पूरा होने के बाद देवताओं को नये वस्त्र पहन कर मस्तक पर चंदन का तिलक लगाया जाता है. भगवान को पालकी में रखे रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है. उन्हें आग्यो माला दी जाती है. सेवक पालकी को श्री मंदिर की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ते हैं.
इस दिन कुछ भक्त भगवान श्रीकृष्ण और भगवान राम की भी पूजा-अर्चना करते हैं. उन्हें पंचामृत से स्नान कराते हैं. इसके बाद चंदन, अक्षत, तुलसीदल और पीला पुष्प चढ़ाया जाता है. चमकीले परिधान पहनाए जाते हैं. भोग में फल एवं मिठाई चढ़ाई जाती है. मान्यता है कि यह पूजा करके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.