Chaitra Navratri 2019: देशभर में चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की धूम है. शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा (Maa Durga) की पूजा-अर्चना के साथ ही नवरात्रि में देशभर के देवी मंदिरों में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग, वस्त्र व आभूषण गिरे थे उन स्थानों को शक्तिपीठ (Shaktipeeth) के रूप में पूजा जाने लगा. देवी मां के 51 शक्तिपीठों में आज हम हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कांगड़ा जिले (Kangda) में एक पहाड़ी के बीच स्थित ज्वालामुखी देवी (Jwalamukhi Devi) शक्तिपीठ के बारे बताने जा रहे हैं, जहां मुगल बादशाह अकबर भी देवी के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हो गया था. मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की जीभ गिरी थी.
कांगड़ा से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पास स्थित इस मंदिर को जोतावाली का मंदिर और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है. ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है. माता के इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है. पृथ्वी के गर्भ से निकलने वाली इन नौ ज्वालाओं को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में सदियों से रहस्यमय तरीके से जल रही है ज्वाला
चमत्कार के आगे नतमस्तक हुआ था अकबर
मान्यताओं के अनुसार, जिन दिनों भारत में मुगल बादशाह अकबर का शासन था, उन्हीं दिनों ध्यानू नाम का माता का भक्त एक हजार यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था. इतने बड़े दल को देखकर अकबर के सिपाहियों ने उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक पर रोक लिया और ध्यानू को दरबार में पेश किया. अकबर के पूछे जाने पर कि वो इतने बड़े जत्थे के साथ कहां जा रहा है तो ध्यानू ने कहा कि वो सभी ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहे हैं.
अकबर ने पूछा कि ये ज्वालामाई कौन है और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू ने कहा कि ज्वालामाई इस संसार का पालन करने वाली माता हैं. वो अपने भक्तों के सच्चे दिल से की गई प्राथनाओं को स्वीकार करती हैं और इस पवित्र स्थान पर बिना तेल-बाती के ज्योति जलती रहती है. यह सुनते ही अकबर ने कहा कि अगर तुम्हारी भक्ति सच्ची है तो देवी मां तुम्हारी इज्जत रखेंगी, फिर माता के चमत्कार और भक्त की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए अकबर ने उसके घोड़े की गर्दन अलग कर दी. इसके बाद ध्यानू भक्त से बोला कि तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करवा लेना.
बादशाह अकबर द्वारा घोड़े का सिर धड़ से अलग किए जाने के बाद ध्यानू ने उससे एक महीने तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की और देवी के दर्शन के लिए निकल पड़ा. मंदिर में पहुंचने के बाद ध्यानू ने अन्य श्रद्धालुओं के साथ स्नान और पूजा करने के बाद रात भर जागरण किया. सुबह की आरती के समय हाथ जोड़कर उसने देवी मां से प्रार्थना की कि मातेश्वरी आप अंतर्यामी हैं. बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना और मेरे घोड़े को अपनी कृपा से पुन: जीवित कर देना. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार
अपने भक्त की इस प्रार्थना को ज्वालामुखी देवी ने स्वीकार कर लिया और उसके घोड़े को फिर से जीवित कर दिया. देवी मां के इस चमत्कार को देखकर अकबर हैरान रह गया और अपनी सेना के साथ मंदिर की तरफ निकल पड़ा. वहां पहुंचने के बाद उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बूझी. तब जाकर उसे देवी मां की महिमा पर यकीन हुआ और वो उनके चमत्कार के आगे नतमस्तक हो गया.
गौरतलब है कि ज्वालामुखी देवी के चमत्कार के आगे घुटने टेकने के बाद अकबर ने सवा मन यानी पचास किलो सोने का छतर चढ़ाया. लेकिन माता ने उसकी भेंट को स्वीकार नहीं किया और वह छतर गिरकर किसी अन्य पदार्थ में बदल गया. इस मंदिर में आज भी अकबर के द्वारा चढ़ाया गया छतर मौजूद है.