Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में सदियों से रहस्यमय तरीके से जल रही है ज्वाला
ज्वाला देवी मंदिर (Photo Credits: Facebook)

देशभर में नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है. ऐसे में भारत में स्थिति देवी मां के मंदिरों में दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ भी उमड़ रही है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे उन स्थानों को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाने लगा. बता दें कि देवी मां के कुल 51 शक्तिपीठ है जिनमें से आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक पहाड़ी के बीच स्थित ज्वाला देवी शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं. मान्यता है कि ज्वाला देवी में माता सती की जिह्वा यानी जीभ गिरी थी, लेकिन इस मंदिर से एक अजीबो-गरीब रहस्य जुड़ा है जिसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया.

51 शक्तिपीठों में शामिल ज्वाला देवी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. चलिए नवरात्रि के इस पावन पर्व पर हम आपको ज्वालादेवी मंदिर और उसके चमत्कारों से अवगत कराते हैं.

सदियों से जल रही हैं नौ ज्वालाएं

ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल और बिना बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं. इन नौ ज्वालाओं में ज्वाला माता की प्रतिमा चांदी के दीपक के बीच विराजमान हैं, जिन्हें महाकाली के तौर पर पूजा जाता है. महाकाली के अतिरिक्त इस शक्तिपीठ में मां अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी आठ ज्वालाओं के रूप में विराजमान हैं. यह भी पढ़ें: Happy Navratri 2018: नवरात्रि के 9 खास भोग, जानें किस दिन क्या अर्पित करने से प्रसन्न होती हैं मां

मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता

इस मंदिर में सदियों से जल रही ज्वाला से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में गोरखनाथ नाम का एक भक्त मां का अनन्य भक्त हुआ करता था. एक बार जब उसे भूख लगी तो उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं. उसके बाद मां ने आग जलाकर पानी गर्म किया और अपने भक्त गोरखनाथ की प्रतीक्षा करने लगीं, लेकिन आज तक गोरखनाथ लौटकर नहीं आए.

मान्यता है कि आज भी मां ज्वाला जलाकर अपने भक्त के वापस लौटने का इंतजार कर रही हैं. इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि जब कलयुग खत्म हो जाएगा और सतयुग फिर से आएगा, तब गोरखनाथ लौटकर मां के पास आएंगे. इस मंदिर से जुड़ी आस्था के अनुसार, यह अखंड ज्योत तब तक ऐसे ही जलती रहेगी और खास बात तो यह है कि इसके लिए घी, तेल और बाती की जरूरत भी नहीं पड़ती है.