Bhadrapada Purnima 2019: वैसे तो हिंदू धर्म में हर महीने पड़नेवाली पूर्णिमा तिथि (Purnima Tithi) का बहुत महत्व बताया जाता है. गणेशोत्सव (Ganeshotsav) के बाद भाद्रपद महीने में पड़नेवाली पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima) के नाम से जाना जाता है. इसी दिन से पितृ पक्ष (Pitru Paksha) की शुरुआत होती है और इस दिन भगवान सत्यनारायण (Lord Satyanarayana) की पूजा का विधान है. इसके अलावा इस दिन उमा-महेश्वर व्रत (Uma-Maheshwar Vrat) भी रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन सत्यनारायण भगवान के लिए व्रत रखने और उनकी कथा सुनने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समुद्धि आती है.
इस साल भाद्रपद पूर्णिमा 14 सितंबर 2019 को पड़ रही है और इसी के साथ श्राद्ध पक्ष की शुरुआत भी हो रही है. चलिए जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व (Bhadrapada Purnima Significance), पूजा विधि (Puja Vidhi) और शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat).
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा का बहुत अधिक मह्तव बताया जाता है, क्योंकि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु ने उमा-महेश्वर व्रत किया था. मान्यता है कि एक बार ऋषि दुर्वासा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था, जिसके चलते श्रीहरि की सारी संपन्नता छिन गई थी. श्राप दिए जाने के बाद जब भगवान विष्णु ने ऋषि दुर्वासा से इसका निवारण पूछा तो उन्होंने श्रीहरि को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उमा-महेश्वर व्रत करने के लिए कहा और इस व्रत के बाद भगवान विष्णु को उनकी सारी संपन्नता फिर से मिल गई, इसलिए कहा जाता है कि इस दिन जो भी सत्यनारायण की कथा सुनता है उसके जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में संपन्नता आती है. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2019: कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष, जानिए क्या है श्राद्ध का महात्म्य और कैसे करें तिथियों का चयन
शुभ मुहूर्त-
पूर्णिमा तिथि- 14 सितंबर 2019.
पूर्णिमा प्रारंभ- 13 सितंबर सुबह 7.35 बजे से,
पूर्णिमा समाप्त- 14 सितंबर सुबह 10.02 बजे तक.
पितृ पक्ष की शुरुआत
भाद्रपद पूर्णिमा से ही पितृपक्ष की शुरुआत होती है, इसलिए इसे हिंदू धर्म में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा की जाती है और योग्य पंडित द्वारा सत्यनारायण की कथा कराई जाती है. इस दिन को ग्रह प्रवेश के लिए उत्तम माना जाता है. बता दें कि इस दिन से पितृ पक्ष की शुरुआत के साथ ही श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे श्राद्धकर्म शुरु हो जाते हैं. 15 दिनों तक लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं और आश्विन मास की अमावस्या को पितरों को अंतिम विदाई देने के बाद पितृ पक्ष का समापन होता है.
पूजा विधि-
- पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
- फिर किसी योग्य पंडित को बुलाकर उससे भगवान सत्यनारायण की विधि-विधान से पूजा करानी चाहिए.
- भगवान सत्यनारायण को नैवेद्य, फल-फूल इत्यादि अर्पित कर सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिए.
- पूजन के बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद लोगों में वितरित करना चाहिए और स्वयं भी खाना चाहिए.
- पूजन के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना चाहिए. यह भी पढ़ें: Pithori Amavasya 2019: भाद्रपद महीने की पिठोरी अमावस्या 30 को, गंगा स्नान व पितरों के श्राद्ध का है खास दिन, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि
उमा-महेश्वर व्रत रखने का है विधान
भविष्य पुराण के अनुसार, मार्गशीष महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को उमा-महेश्वर व्रत रखा जाता है, जबकि नारद पुराण के अनुसार, भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को यह व्रत रखना चाहिए. इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. यह व्रत महिलाओं के लिए खास महत्व रखता है. कहा जाता है कि इस व्रत को करने से बुद्धिमान संतान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.