Ashwin Vinayak Chaturthi 2023: कब है आश्विन विनायक चतुर्थी? जानें इस विशेष दिन का महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त एवं पूजा-विधि!
Ashwin Vinayak Chaturthi 2023

हिंदू धर्म शास्त्रों में भगवान गणेश को शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष की हर चतुर्थी का स्वामी बताया गया है. आश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आश्विन विनायक चतुर्थी कहते हैं, शरद नवरात्रि का समय और बुधवार का दिन होने से इस चतुर्थी का विशेष महत्व बताया जा रहा है. ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन पूजा-अनुष्ठान करने से बुध ग्रह से संबंधित सारे दोष दूर होते हैं, साथ ही नौकरी अथवा व्यवसाय में लाभ प्राप्त होता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 18 अक्टूबर 2023, बुधवार को आश्विन विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. इस दिन सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे, इसलिए इसी दिन दिन तुला संक्रांति भी मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, आश्विन विनायक चतुर्थी का महात्म्य, मुहूर्त, पूजा-व्रत के नियम. यह भी पढ़ें: Diwali 2023 Date: कब है रोशनी का महापर्व दिवाली 12 या 13 नवंबर? जानें धनतेरस से भैया दूज तक महापर्व की पूरी सूची!

आश्विन विनायक चतुर्थी का महत्व

देवी पुराण के अनुसार भगवान गणेश एवं मां दुर्गा पंचदेवों के रूप में माने गए हैं. गणेश जी प्रथम पूज्य देव माने गए हैं. किसी भी शुभ अथवा देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है, तभी अभीष्ठ मनोकामनाएं पूरी होती हैं, जीवन में सुख एवं शांति आती है. वहीं नवरात्रि (चैत्रीय नवरात्रि हो या शारदीय नवरात्रि) में मां दुर्गा की नौ विभिन्न शक्ति स्वरूपों में जा-अर्चना की जाती है, जिससे जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं, और खुशियां आती हैं. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि में भगवान गणेश के विनायक स्वरूप तथा देवी दुर्गा जी की साथ-साथ पूजा-अनुष्ठान करने से बुद्धि, शक्ति, सिद्धि, ज्ञान एवं समृद्धि प्राप्त होता है.

अश्विन विनायक चतुर्थी मुहूर्त

आश्विन चतुर्थी प्रारंभः 01.26 AM (18 अक्टूबर 2023, बुधवार)

आश्विन चतुर्थी समाप्तः 01.12 AM (19 अक्टूबर 2023, गुरुवार)

उदया तिथि के अनुसार 18 अक्टूबर 2023 को ही गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा.

पूजा का शुभ मुहूर्तः 10.58 AM से 00.15 PM (18 अक्टूबर 2023, बुधवार)

आश्विन विनायक चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन गणेश भक्त सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें. तत्पश्चात स्नानादि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विनायक अर्थात गणेशजी एवं देवी कूष्मांडा का ध्यान करें. व्रत एवं पूजा का संकल्प करते हुए अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करें. सूर्यदेव को जल अर्पित करें. भगवान गणेश की प्रतिमा को एक स्वच्छ चौकी पर स्थापित करें और गंगाजल का छिड़काव कर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा शुरू करें.

ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश।

ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति. करो दूर क्लेश।।

लाल पुष्प, सिंदूर (महिलाएं), रोली, अक्षत, दूर्वा की 21 गांठ अर्पित करें. भोग में फल एवं मोदक चढ़ाएं.

इसके पश्चात गणेश जी की आरती उतारें, और भगवान का प्रसाद वितरित करें.

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