April Fools' Day 2021: 'अप्रैल फूल' (April Fools' Day) यानी मूर्ख बनने-बनाने का खास दिन. यह विशेष दिवस प्रत्येक वर्ष की पहली अप्रैल को मनाया जाता है. कुछ स्थानों पर इसे 'ऑल फूल्स डे' (All Fools' Day) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन दुनिया भर में हल्के-फुल्के हंसी-मजाक के अंदाज में, एक दूसरे को मूर्ख साबित करने के नये-नये हथकंडे अपनाए जाते हैं. अधिकांश लोग अपने मित्रों, अध्यापकों, सहकर्मियों, पड़ोसियों, एवं करीबी लोगों के साथ हलके-फुलके कहकहों, कटाक्षों, व्यंग्योक्तियों के साथ विनोद दिवस मनाते हैं. अप्रैल फूल की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस संदर्भ में तमाम किंवदंतियां प्रचलित हैं. आइये जानें मूर्खता दिवस के शुरु होने की चुटीली कहानियां...
कहानी नये कैलेंडर की!
17वीं सदी में युरोप के लगभग सभी देशों में एक कैलेंडर प्रचलन में था, जिसके अनुसार हर वर्ष पहली अप्रैल से नया वर्ष शुरु होता था. लेकिन साल 1564 में वहां के राजा चार्ल्स-9 ने एक बेहतर और मार्डन कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया. इस नये कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी से नये वर्ष की शुरुआत मानी गयी थी. लेकिन कुछ पुरातनपंथियों ने नये कैलेंडर को नहीं मानते हुुए, पहली अप्रैल को ही नववर्ष मनाते रहे. तब इन्हें रास्ते पर लाने के लिए नया कैलैंडर बनाने वालों ने उन्हें मूर्ख साबित करते हुए उनके खिलाफ तरह-तरह के मजाक भरे व्यंग्य, प्रहसन, झूठे उपहार और मूर्खतापूर्ण ढंग से बधाइयां देनी शुरु की. कहते हैं धीरे-धीरे सभी ने नये कैलेंडर को मान्यता देना शुरु कर दिया, लेकिन 1 अप्रैल को मूर्ख बनाने का प्रचलन बंद नहीं हुआ और आज भी इसी तरह लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की जाती है.
बनारस (वाराणसी) का वरनाप्याला
भारत में प्राचीनकाल में बनारस (वाराणसी), श्रावस्ती, काशी एवं राजगीर में प्रतिवर्ष 'सुरान भवन' नामक मुर्खोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था. एक सप्ताह उत्सव पूरे एक सप्ताह चलता तक चलता था, कहते हैं इसकी शुरुआत 1 अप्रैल से होती थी. इस उत्सव का विवरण जातक ग्रंथों से मिलता है, हांलाकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस मूर्खोत्सव की शुरुआत 1 अप्रैल से ही क्यों होती थी. जानकारों का कहना है कि आज भी वाराणसी में मुर्खोत्सव वरनाप्याला नाम से मनाया जाता है.
32 मार्च के विवाह का आमंत्रण
ब्रिटिश लेखक चॉसर की पुस्तक 'द कैंटरबरी टेल्स' के अनुसार इंग्लैंड के राजा रिचर्ड-2 और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च, 1381 बताई गयी, जिसे स्थानीय लोगों ने सच मान लिया, लेकिन विवाह जब 1 अप्रैल को सम्पन्न हुआ, तब लोगों ने खुद को मूर्ख महसूस किया. तभी से पहली अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाने का प्रचलन शुरु हुआ. समय के साथ एक दूसरे को मूर्ख बनाने के नये-नये हथकंडे बनते गये. यह भी पढ़ें: April 2021 Festival Calendar: अप्रैल में मनाए जाएंगे चैत्र नवरात्रि और बैसाखी जैसे कई बड़े पर्व, देखें इस महीने के सभी व्रत-त्योहारों की पूरी लिस्ट
जब चींटी ने राजा को जिंदा निगल लिया
इस संदर्भ में एक और हास्य प्रसंग है. कहते हैं कि एक बार यूनान में मोक्सर नामक एक राजा था, जो अपने मजाकिया स्वभाव के लिए जनता में बहुत लोकप्रिय था. एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है, सुबह जागने पर सपने को याद करके राजा जोर-जोर से हंसने लगा. रानी उसे देखकर परेशान हो गई, उससे हंसने का कारण पूछा तो राजा ने उसे सपने की बात बता दी. इस पर रानी भी हंसने लगी. दरबार लगी, तो एक ज्योतिष से राजा ने इस सपने का अर्थ जानना चाहा, तो ज्योतिष ने बताया, -महाराज यह स्वप्न बताता है कि इस दिन को सारे राज्य में हंसी- ठिठोली के दिन के रूप में घोषित कर दीजिये. वह पहली अप्रैल की तारीख थी. कहते हैं कि राजा ने ज्योतिषी की बात मानते हुए उसे हंसी-ठिठोली का दिन घोषित कर दिया. इसके बाद से ही प्रत्येक पहली अप्रैल को हंसी-ठिठोली के रूप में मनाया जाने लगा.
जब संत की दाढ़ी में लगी आग!
प्राचीनकाल में चीन में सनंती नामक एक संत रहा करते थे. संत की जमीन को छूती लंबी दाढ़ी थी. एक दिन वह कहीं से गुजर रहे थे, कि उनकी दाढ़ी में आग लग गई, बचाओ-बचाओ चीखते हुए जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. उन्हें इस तरह से जलती दाढ़ी के साथ उछलते देख बच्चे ताली बजाकर हंसने लगे. संत ने कहा कि मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के दिन हमेशा किसी न किसी पर यूं ही हंसते रहोगे. ऐसा कहते हुए उनकी मृत्यु हो गयी. संयोगवश वह 1 अप्रैल का ही दिन था.