Pingali Venkayya Death Anniversary: तिरंगा निर्माता पिंगली वेंकैया हैं राष्ट्र का मान, जिन्होंने भारत की पहचान को दिया रंग

नई दिल्ली, 3 जुलाई : 4 जुलाई को देश स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया को बड़े मान से याद करता है. ये वही महान शख्स थे, जिन्होंने भारत को 'तिरंगा' दिया. तीन रंगों वाले राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली वेंकैया की 4 जुलाई को पुण्यतिथि है. उनका जन्म 2 अगस्त 1878 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटला पेनुमारु में हुआ था. वो एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ शिक्षक, लेखक और कृषि वैज्ञानिक भी थे. ग्रामीण आंध्र प्रदेश में पले-बढ़े वेंकैया ने आगे चलकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई पूरी की. इसी बीच उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई.

जब भारत अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, तो एक राष्ट्रीय ध्वज की जरूरत थी. इस दौरान झंडे के कुछ प्रारूप देखे गए. कहा जाता है कि महात्मा गांधी की ओर से पिंगली वेंकैया को भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने के लिए कहा गया. इस आग्रह पर वेंकैया ने अपने प्रयास शुरू किए. 5 साल तक दुनियाभर के राष्ट्रीय झंडों की स्टडी के बाद करीब 30 डिजाइन पेश किए गए. इनमें से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में चुना गया. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अपने मित्र-परिजनों को भेजें ये प्रेरक कोट्स!

1921 में पिंगली वेंकैया की ओर से बनाया गया ध्वज पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा पहचाने जाने योग्य था. इसमें तीन रंगों की धारियां थीं, जो भारत के अलग-अलग समुदायों की एकता का प्रतीक थीं. बीच में चरखा आर्थिक आत्मनिर्भरता का संदेश देता था.

1931 में इस ध्वज को अंतिम रूप दिया गया. इसमें केसरिया रंग को साहस का, सफेद को शांति का और हरे रंग को उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना गया. चरखे की जगह धर्म चक्र ने ली, जो धर्म, न्याय और प्रगति के शाश्वत चक्र का प्रतीक है. 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था.

15 अगस्त 1947 की सुबह 5:30 बजे फहराया गया तिरंगा एक नए युग की शुरुआत थी. ये क्षण खुशी और गर्व से भरा था. बरबस ही आजादी के दीवानों की आंखों के आगे वो यात्रा तैर गई जो लंबी और कठिन थी. उस कठिन डगर पर चलकर ही स्वतंत्र भारत का सपना साकार हुआ था. यही तिरंगा आज भारत की पहचान है.

कहा जाता है कि देश के प्रति अपने योगदान और समर्पित भाव के बाद भी पिंगली वेंकैया गरीबी और गुमनामी में रहे. उन्होंने अपने अंतिम दिन भी बहुत सादगी के साथ बिताए और 4 जुलाई 1963 को उनका निधन हो गया. 2009 में भारत सरकार ने उनके योगदान को याद करते हुए एक डाक टिकट जारी किया था.