क्रिप्स मिशन के साथ ब्रिटिश युद्ध के लिए भारतीय समर्थन हासिल करने में ब्रिटिश हुकूमत असफल हो गई थी, तब राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 8 अगस्त 1942 को ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध ‘करो या मरो’ नारे के साथ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का आह्वान किया. तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो ने इस आंदोलन को 1857 के बाद से अब तक का सबसे गंभीर विद्रोह बताते हुए महात्मा गांधी और नेहरू समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. ब्रिटिश हुकूमत को लगा, कि गांधी का साथ नहीं मिला, तो यह आंदोलन ठंडा पड़ जाएगा, लेकिन आंदोलन और विकराल हो गया. ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की 83वीं वर्षगांठ पर आइये जानते हैं कि गांधीजी के बाद इस आंदोलन किन-किन नेताओं का नेतृत्व मिला. यह भी पढ़ें : Jhoolan Yatra 2025: झूलन-यात्रा कब, कहां और क्यों मनाया जाता है? जानें इसका महत्व एवं इसका 5 दिवसीय कार्यक्रम!
महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद इन नेताओं ने मोर्चा संभाल
‘आयरन लेडी’ अरुणा आसफ अली
ब्रिटिश पुलिस द्वारा गांधी जी को गिरफ्तार किये जाने के बाद 9 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान (आज अगस्त क्रांति मैदान) में अरुणा आसफ अली ने तिरंगा फहराते हुए आंदोलन की बागडोर संभाली. उन्होंने भूमिगत होकर आंदोलन को मुखर तरीके से नेतृत्व किया. उनकी तेज-तर्रार कार्य प्रणाली को देखते हुए ही उन्हें ‘वीरांगना’ एवं ‘आयरन लेडी’ आदि नाम से विभूषित किया जाता है.
‘भूमिगत रेडियो की सूत्रधार’ उषा मेहता
महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद, जब ब्रिटिश हुकूमत द्वारा सेंसरशिप और दमनात्मक कार्यवाई तेज़ हो गयी, तब उषा मेहता ने भूमिगत रेडियो स्टेशन ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ शुरू किया. इसके माध्यम से आंदोलन के संदेश, नेताओं की बातें, और ब्रिटिश दमन की खबरें जनता तक शीघ्रता से पहुंचने लगी. उषा मेहता के नेतृत्व में यह रेडियो 3 महीने तक चला और सरकार की आंखों में धूल झोंकता रहा. अंततः उन्हें भी अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
‘क्रांतिकारी’ नेतृत्व’ जयप्रकाश नारायण
‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के पश्चात अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीय नेताओं की तेजी से धरपकड़ शुरू की तो कई भारतीय नेता जमींदोज हो गये. इन्हीं में एक थे जयप्रकाश नारायण. अंग्रेजी पुलिस की गिरफ्त से दूर होकर जयप्रकाश ने 'आजाद दस्ते' नाम से एक गुप्त संगठन बनाकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में और तेजी लाई, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में. उन्होंने जनता से अपील की कि वे सरकारी संस्थानों को ठप करें और ब्रिटिश हुकूमत के किसी भी आदेश को न मानें.
‘क्रांतिकारी विचारक’ राम मनोहर लोहिया
भूमिगत होकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में तेजी लाने में डॉ. राम मनोहर लोहिया की भी अहम भूमिका रही है. उन्होंने भी भूमिगत होकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में धारदार बनाने की कोशिश की. वे भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर जनता को आंदोलन के लिए प्रेरित करते रहे. उन्होंने भूमिगत समाचार पत्रों और पर्चों के माध्यम से जनता को संगठित किया. उनका मानना था कि जब बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया जाये तो जनता को स्वयं आगे आकर नेतृत्व करना चाहिए.
भारतीय जनता का आक्रोश
अंग्रेजी हुकूमत मिथक धारणा से ग्रस्त की थी, बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया जायेगा तो आम जनता ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से स्वतः अलग हो जाएगी. लेकिन जनता ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से जागृत हो चुकी थी. गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद जनता ने स्वतः स्फूर्त तरीके से सरकार विरोधी गतिविधियां शुरू कर दी. रेलवे पटरियां उखाड़ी गईं, डाक-तार सेवाएँ बाधित की गईं, पुलिस थानों पर हमले हुए. यह आंदोलन अब नेताओं से आगे बढ़कर एक ‘जन आंदोलन’ बन चुका था.













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