04 फरवरी 1922 चौरी चौरा कांड में 22 सिपाहियों की मौत ने दुनिया को हिला दिया था, शायद सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे अहिंसा के देवदूत महात्मा गॉंधी! इस हिंसक घटना से वह इतने द्रवित हुए कि आनन फानन उन्होंने ब्रिटिश सरकार को हिला देनेवाले असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, जिसके बाद निश्चित रूप से अंग्रेजी हुकूमत ने राहत की सांस ली होगी. लेकिन जब धीरे-धीरे चौरी चौरा कांड के फैक्ट उजागर होते गये हर किसी का यही कहना था कि, गांधी ने जल्दबाजी में आंदोलन वापसी का फैसला लिया. आखिर क्या थी चौरी चौरा कांड की संपूर्ण घटना क्रम…
आंदोलनकारियों ने पुलिस स्टेशन को क्यों फूंका
उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) के जिले का एक कस्बा है चौरी चौरा. जलियांवाला बाग हत्याकांड एवं रोलेट एक्ट का विरोध और अंग्रेजी हुकूमत की वादाखिलाफी के विरोध स्वरूप असहयोग आंदोलन छेड़ा था. आंदोलन को मिल रहे प्रचंड जनसमर्थन अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई. 04 फरवरी को चौरी चौरा में प्रदर्शनकारियों ने मार्केट लेन चौराहे की ओर रुख किया. आंदोलन में जुड़े जनसैलाब से अंग्रेज अधिकारी बौखला गये, उन्होंने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी, पुलिस के इस दमनात्मक कार्रवाई से किसान और छात्र उग्र होकर चौरी चौरा पुलिस स्टेशन में घुस गये, और थाने में आग लगा दी. इस वजह से 22 सिपाही और 3 नागरिक मारे गये. इस घटना पर अदालत में मुकदमा चला, जिसमें 14 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई,
असहयोग आंदोलन की वापसी का आदेश और पंडित नेहरू
ब्रिटिश सरकार ने बौखलाकर चौरीचौरा और आसपास क्षेत्रों मार्शल लॉ लागू कर दिया. घटना से दुखी होकर गांधी जी पांच दिन के उपवास पर चले गये, इसके बाद असहयोग आंदोलन को निरस्त कर दिया. तब नेहरू जी जेल में थे, उन्होंने गांधी के इस निर्णय को उचित नहीं माना.
मृत सिपाही रघुबीर सिंह ने अदालत में गवाही दी
शोध के रिपोर्ट बताते हैं कि चौरी-चौरा कांड को हिंसक बनाने में अंग्रेज अधिकारियों ने साजिश रची थी. छात्र और किसानों की हिंसा का बदला लेने के लिए अंग्रेज पुलिस अधिकारियों ने आम लोगों पर जमकर कहर बरपाया. आंदोलनकारियों को कुचलने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने मुकदमे के नाम पर तमाम झूठी कहानियां गढ़ी. थाने के भीतर बने पुलिस वालों के शहीद स्मारक और चौरी चौरा कांड की जांच करने वाले अधिकारियों की रिपोर्ट में जिस सिपाही रघुबीर सिंह को शहीद बताया था, वही रघुबीर सिंह 22 सितंबर 1922 को गवाह के रूप में जब कोर्ट में पेश किया गया, तो लोगों की आंखें फटी-सी रह गई. कोर्ट में दर्ज किये गवाहों के बयान से जुड़े दस्तावेज में पृष्ठ संख्या 742 पर रघुबीर सिंह का बयान दर्ज है. चौरीचौरा कांड पर प्रमाणिक शोधकर्ता सुभाष चंद्र कुशवाहा ने सिपाही रघुबीर सिंह को पहले शहीद बताए जाने और बाद में गवाह के तौर उसे कोर्ट में पेश होने का उल्लेख किया है.ये सारी बातें इस ओर भी इशारा करती हैं कि चौरी चौरा कांड के पीछे गांधीजी को इमोशनल ब्लैकमेल करने की साजिश रची, ताकि हिंसा की खिलाफत करने वाले गांधी जी असहयोग आंदोलन रद्द कर दें, और वही हुआ.