जिस तरह से 14 या 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है. इसी तरह 13 या 14 अप्रैल को मेष संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. दोनों पर्वों में बहुत समानता है, दोनों को ही फसलों का पर्व माना जाता है. दोनों ही पर्व पर गंगा-स्नान एवं दान का विशेष महत्व है, दोनों ही पर्वों को विभिन्न नामों से मनाया जाता है. यहां हम मेष संक्रांति यानी बैसाखी पर्व के विभिन्न पहलुओं पर बात करेंगे, जिसे जानकर आप भी चौंक जायेंगे.
* मान्यता है कि भगवान विष्णु की पहल पर ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना शुरू की थी. इसलिए अगर कहा जाये कि यह दिन मानव समाज ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों, नदी, पहाड़ा और प्रकृति से जुड़ी तमाम चीजों के लिए विशेष मायने रखती है तो गलत नहीं होगा.
* बैसाखी के दिन को नये साल के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग रबी की नई-नई फसल की पूजा करते हैं. मित्रों एवं परिजनों के साथ खुशियां शेयर करते हैं, और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं. पंजाब और हरियाणा में तो इस पर्व की रौनक देखते बनती है.
* सिख धर्म के अनुसार बैसाखी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गौरतलब है कि खालसा पंथ की यह स्थापना 13 अप्रैल, 1699 को आनंदपुर साहिब में गुरु गोविंद सिंह ने की थी. इसलिए बैसाखी का पर्व सिख समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. यह भी पढ़ें : Baisakhi 2023: कब मनाई जाएगी बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को? जानें पर्व का महत्व, सेलिब्रेशन और इसका इतिहास!
* प्रचलित इतिहास के अनुसार साल 1875 में बैसाखी के दिन ही स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना की थी. इस तरह हिंदू समाज के लिए इस दिन का बहुत ज्यादा महत्व है, आर्य समाज के लोग भी बैसाखी पर्व को उसी धूमधाम के साथ सेलिब्रेट करते हैं, जिस तरह पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के लोग बैसाखी मनाते हैं.
* बैसाखी पर्व को विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न नामों, संस्कृतियों एवं रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है. उदाहरण स्वरूप उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘सतुआन’, असम में ‘बिहू’, बंगाल में ‘पोइला बोइसाख’, बिहार में सत्तूआन, तमिलनाडु में ‘पुथांडु’ और केरल में ‘विशु’ के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि सतुआन के इस अवसर पर हर हिंदू घरों में सतुआ दान किया जाता है और सत्तू के व्यंजन भी बनाए जाते हैं.
* बैसाखी वस्तुतः कृषि प्रधान पर्व है, इस दिन रबी की फसल पकने के बाद काटी जाती है, इसलिए बैसाखी के पर्व को ‘धन्यवाद’ दिवस के रूप में भी सेलिब्रेट करते हैं, क्योंकि पंजाब एवं हरियाणा के किसान फसल काटने के बाद धरती माता को धन्यवाद देते हैं और अगले बरस भी अच्छी फसल की प्रार्थना करते हैं, ताकि संपूर्ण जगत का कल्याण हो.
* साल 1919 बैसाखी के दिन ही क्रूर अंग्रेजी हुकूमत ने जलियांवाला बाग में नरसंहार किया था, इतिहासकारों के अनुसार यह घटना 13 अप्रैल, 1919 को हुई थी. गौरतलब है कि बैसाखी के दिन पर्व जश्न मना रहे मासूम बच्चों एवं बड़ों पर जनरल डायर ने गोलियां बरसाई थी, जिसमें हजारों निर्दोषों की जान गई थी.
* पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बैसाखी के दिन ही भागीरथ के प्रयास से मां गंगा का पृथ्वी पर उद्भव हुआ था, हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं, इसलिए उन्हें मोक्षदायिनी कहा जाता है. इस दिन भारी संख्या में भक्त गंगा-स्नान करते हैं.
* सनातन धर्म में सौर वर्ष की शुरुआत सूर्य के मीन राशि से मेष राशि में गोचर करने पर होती है. इसी दिन बैसाखी मनाई जाती है. अमूमन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 या 14 अप्रैल को सूर्य का यह परिवर्तन होता है, इस बार 14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे, इसलिए 14 अप्रैल को ही सौर वर्ष और बैसाखी मनाई जाएगी.