भारत में मनाये जाने वाले अधिकांश पर्व या तो मौसम से संबद्ध होते हैं या फसलों से. ऐसा ही एक धार्मिक पर्व है बैसाखी (वैसाखी). मूलतः यह पंजाब का मुख्य पर्व है, लेकिन संपूर्ण भारत के अलावा सात समंदर पार भी बैसाखी के रंग खूब जमते हैं. यह पर्व अलग-अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ देश भर में विभिन्न नामों से मनाये जाते हैं. मसलन असम में रोंगाली बिहु, पश्चिम बंगाल में नबा बरसा (पहली बारिश), बिहार में वैशाख, केरल में विशु और तमिलनाडु में पुथांडु के नाम से सेलीब्रेट किया जाता है. हम बात करेंगे पंजाब के बैसाखी की, जो वस्तुतः सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है. इस बार बैसाखी 14 अप्रैल को मनायी जायेगी.
बैसाखी का इतिहास एवं महत्व!
हिंदू पंचांग के अनुसार, बैसाखी के दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है. पूर्णिमा में विशाखा नक्षत्र होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं. बैसाखी से पंजाबी नववर्ष का आरंभ होता है.
प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को यह पर्व मनाया जाता है. पंजाब में यह पर्व सदियों से मनाया जा रहा है. सिख साहित्य के अनुसार यह दिन सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्म-दिन का भी प्रतीक है, जिन्होंने साल 1699 में ‘खालसा’ के नींव रखने के लिए इस दिन को चुना था. भारत का उत्तरी क्षेत्र पंजाब एवं हरियाणा जो मुख्यतः कृषि प्रधान प्रदेश हैं. इस दिन को एक प्राचीन स्प्रिंग हार्वेस्ट के रूप में मनाते हैं. किसान अपनी कृषि भूमि से अच्छी फसल का आशीर्वाद मांगते हैं, और सीजन की पहली फसल की कटाई शुरु करते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार बैसाखी का यह पर्व वैशाख मास के पहले दिन मनाया जाता है. यह भी पढ़ें : Kamada Ekadashi 2022 Wishes: शुभ कामदा एकादशी! शेयर करें श्रीहरि के ये WhatsApp Messages, GIF Greetings, HD Images और Quotes
ऐसे करते हैं सेलीब्रेशन!
इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है. शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं. पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं. मुख्य समारोह आनन्दपुर साहिब में होता है, जहाँ पन्थ की नींव रखी गई थी. सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को परंपरागत तरीके से कक्ष से बाहर लाया जाता है. दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रन्थ साहिब को तख्त पर बिठाया जाता है. इसके बाद पंच-प्यारे 'पंच-वाणी' गाते हैं. दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है. प्रसाद लेने के बाद सब लोग 'गुरु के लंगर' में शामिल होते हैं. श्रद्धालु इस दिन कार सेवा करते हैं. पूरे दिन दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं. किसान इस दिन को 'थैंक्स गिविंग' मानते हैं. वे ईश्वर से अच्छी फसल के लिए आभार व्यक्त करते हैं और आनेवाले दिनों में अच्छे मौसम की शुरुआत के लिए प्रार्थना करते हैं.