
मार्च माह में अमावस्या 29 मार्च को पड़ रहा है. इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है. चैत्र अमावस्या के दिन गंगा अथवा किसी पवित्र नदी में स्नान कर तिल, लड्डू व तेल का दान करना चाहिए. मार्च के महीने में आनेवाली अमावस्या तिथि को चैत्र अमावस्या कहा जाता है. चैत्र अमावस्या के दिन शुभ योग का संयोग बन रहा है. चैत्र अमावस्या का दिन पितृ दोष, काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए भी यह दिन शुभ है.
चैत्र अमावस्या का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र अमावस्या का विशेष महत्व है, क्योंकि यह नए संवत की शुरुआत का प्रतीक है. यह दिन पूर्वजों के श्राद्ध-अनुष्ठान हेतु शुभ माना जाता है. इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है. यह भी पढ़ें : Shivaji Maharaj Death Anniversary 2025: मराठा-राज का विस्तार ही नहीं जनकल्याण कार्य में भी आगे थे शिवाजी महाराज! जानें उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग!
नव वर्षः चैत्र अमावस्या नये संवत की शुरुआत का प्रतीक है.
श्राद्ध अनुष्ठानः दिवंगतों की आत्माओं को शांति और उनकी प्रसन्नता हेतु श्राद्ध करने के लिए बेहद शुभ दिन है.
आध्यात्मिक शुद्धि: इस दिन गंगा जैसी नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप एवं नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं.
ज्योतिषीय महत्वः ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चैत्र अमावस्या का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. नई शुरुआत, नए इरादों के बीज बोने और इच्छाओं को दर्शाने के लिए उपयुक्त पल है.
चैत्र अमावस्या मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त (दृक पंचांग के अनुसार)
चैत्र मास कृष्ण पक्ष अमावस्या प्रारंभः 07.55 PM (28 मार्च 2025, शुक्रवार)
चैत्र मास कृष्ण पक्ष अमावस्या समाप्तः 04.27 PM (29 मार्च 2025, शनिवार)
उदया तिथि के अनुसार चैत्र अमावस्या 29 मार्च को मनाया जाएगा.
चैत्र अमावस्या पूजा विधि
चैत्र अमावस्या के दिन स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य को जल अर्पित करते हुए भगवान शिव एवं विष्णु जी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. मंदिर की सफाई करें. मंदिर में धूप दीप प्रज्वलित करें. भगवान गणेश को तिलक लगाकर गणेशजी की स्तुति करें. अब विष्णु जी एवं शिवजी की पहले पंचामृत से इसके पश्चात गंगाजल से अभिषेक करें. अब शिव जी को सफेद चंदन, बेल पत्र, एवं विष्णु जी को पीला चंदन, पीला पुष्प एवं तुलसी का पत्ता चढ़ाएं. पहले शिव चालीसा इसके बाद विष्णु चालीसा का पाठ करें. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप भी कर सकते हैं. अंत में शिवजी एवं विष्णु जी की आरती उतारें, एवं सबको प्रसाद वितरित करें.