नई दिल्ली: हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि केवल तलाक मांगने या अपने पति का साथ छोड़ने से पत्नी भरण-पोषण (Maintenance) के अधिकार से वंचित नहीं हो सकती, यदि उसने पति का साथ छोड़ने के लिए पर्याप्त कारण दिए हों. जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने यह भी कहा कि पत्नी की शैक्षिक योग्यता यह आधार नहीं हो सकता कि उसे भरण-पोषण से वंचित किया जाए.
यह फैसला एक ऐसे मामले में सुनाया गया, जहां पति ने परिवार न्यायालय द्वारा नवंबर 2022 में दिए गए आदेश को चुनौती दी थी. उस आदेश में परिवार न्यायालय ने पत्नी को ₹5,500 मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था. इसके साथ ही अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि महंगाई को ध्यान में रखते हुए हर दो साल बाद भरण-पोषण की राशि में 10% की वृद्धि की जाएगी.
क्या है मामला?
पत्नी ने अदालत में आरोप लगाया था कि उसका पति शराबी है, जो उसे मारता-पीटता है और उसके परिवार वाले उसे दहेज की कमी के कारण तंग करते हैं. इसके अलावा, उसने यह भी आरोप लगाया कि उसका पति, पर्याप्त साधनों के बावजूद, उसकी देखभाल करने और उसके खर्चों को वहन करने से इनकार करता है.
पति ने अदालत में अपनी आय को ₹13,000 प्रति माह बताया, जबकि परिवार न्यायालय ने दिल्ली के न्यूनतम वेतन मानक के आधार पर उसकी आय को ₹16,000 प्रति माह माना. अदालत ने पति की अपील को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी की गवाही अधिक विश्वसनीय और सटीक है, और उसकी गवाही में मामूली अंतर के कारण इस पर संदेह नहीं किया जा सकता.
जस्टिस महाजन ने इस बात पर जोर दिया कि जब कोई व्यक्ति वैवाहिक विवाद में उलझता है, तो उसकी आय को कम आंका जाने की प्रवृत्ति होती है. उन्होंने यह भी कहा कि आयकर रिटर्न भी वास्तविक आय का सटीक प्रतिबिंब नहीं हो सकता है, खासकर इस तरह के मामलों में.
अदालत ने यह भी देखा कि पति ने यह दावा किया था कि वह अपने माता-पिता के साथ रह रहा है, लेकिन उसने अपने माता-पिता के खर्चों का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया. न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि पति, एक सक्षम व्यक्ति होने के नाते, अपनी पत्नी का आर्थिक समर्थन करने के लिए बाध्य है और यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि पत्नी अपनी आजीविका के लिए सक्षम थी.