चीन से ज्यादा कब हो जाएगी भारत की जनसंख्या?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कुछ दिन से ऐसी खबरें चल रही हैं कि भारत की जनसंख्या इस महीने चीन से ज्यादा हो जाएगी. कुछ लोगों का अनुमान है कि ऐसा जुलाई में होगा. लेकिन एक अनुमान यह भी है कि ऐसा पहले ही चुका है. क्या है सच्चाई?जनसंख्याविद इस बात को लेकर उलझे हुए हैं कि भारत कब दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनेगा. इस मामले में अलग-अलग अनुमान जाहिर किए जा रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि भारत पहले ही चीन से आगे निकल चुका है लेकिन कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा जुलाई में होगा. उलझनें इसलिए ज्यादा हैं क्योंकि यह आंकड़ा अनुमान पर ही आधारित है.

1950 के दशक में चीन दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना था. अब उसकी आबादी 1.4 अरब से ज्यादा है लेकिन भारत भी 1.4 अरब के आंकड़े को पार कर चुका है. दोनों देशों में कुल मिलाकर पूरी दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा लोग रहते हैं. दुनिया की आबादी 8 अरब को पार कर चुकी है.

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बेल्जियम स्थित लूवाँ यूनिवर्सिटी के जनसंख्याविद ब्रूनो शूमेकर कहते हैं, "ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे सटीक वक्त का पता लगाया जा सके कि भारत कब चीन से आगे निकलेगा. भारत ही नहीं, चीन की आबादी के मामले में भी अनिश्चितता की स्थिति है."

तो कब आगे निकलेगा भारत?

आबादी का पता लगाने के लिए विशेषज्ञ गणितीय गणनाओं और सर्वेक्षणों के साथ-साथ जन्म और मृत्यु के रिकॉर्ड पर निर्भर हैं. इन्हीं के आधार पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अप्रैल के मध्य में किसी वक्त भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी. लेकिन वे चेताते हैं कि इसे पुख्ता जानकारी नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि आंकड़े धुंधले हैं और बदल सकते हैं.

न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या अनुमान लगाने वाले विभाग के प्रमुख पैट्रिक गेरलांड कहते हैं, "यह एक मोटा-मोटा अंदाजा है. बस तुक्का समझिए.”

कुछ साल पहले तक भारत की आबादी के मामले में चीन से आगे निकलने की कोई संभावना नहीं थी. लेकिन चीन की जन्म दर में भारी कमी ने परिस्थितियों को बदल दिया. चीन इस वक्त आबादी घटने की समस्या से गुजर रहा है और इसे ठीक करने के लिए उसने अपनी नीतियों में बड़े बदलाव किए हैं. मसलन, लोगों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग के जनसंख्याविद आबादी की गणना करने के लिए कई तरह के तरीके इस्तेमाल करते हैं. वे आंकड़ों के लिए ऐसे स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिन पर वे भरोसा करते हैं और मानते हैं कि वहां समय पर आंकड़ों को अपडेट किया जाता है. न्यूयॉर्क में यूएन पॉपुलेशन ऑफिसर सारा हेर्तोग कहती हैं कि पिछली बार भारत और चीन की आबादी के आंकड़े जुलाई 2022 में जोड़े गए थे.

आबु धाबी स्थित खलीफा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर स्टुअर्ट गीटेल-बास्टन कहते हैं कि आंकड़े जमा करने के बाद विशेणज्ञ सांख्यिकीय तकनीकों का इस्तेमाल कर यह अनुमान लगा रहे हैं कि कब भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी. वह बताते हैं, "सच्चाई यही है कि ये आंकड़े बस अनुमान ही हैं. लेकिन कम से कम इतना जरूर है कि ये अनुमान ठोस तकनीक पर आधारित हैं.”

चीन से आगे क्यों निकल रहा है भारत

दोनों देशों की आबादी से जुड़े आंकड़ों का सबसे पुख्ता स्रोत तो जनगणना ही है, जो कि हर दस साल में एक बार की जाती है. चीन में पिछली जनगणना 2020 में हुई थी. विशेषज्ञ जन्म और मृत्यु के रिकॉर्ड और अन्य प्रशासनिक आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाते हैं कि तब से देश की जनसंख्या में कितने लोग जुड़ चुके हैं.

भारत में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी. 2021 में होने वाली जनगणना को कोविड के कारण टाल दिया गया दिल्ली स्थिति जनसेवी संस्था पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के आलोक वाजपेयी कहते हैं कि घर-घर जाकर जुटाए गए आंकड़ों की अनुपस्थिति में जनसंख्याविदों के पास बीच-बीच में हुए सर्वेक्षण ही उपलब्ध हैं, जो जनसंख्या के अनुमान का आधार हैं. इन सर्वेक्षणों में सबसे प्रमुख सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम है जो जन्म, मृत्यु, जन्म दर आदि पर सर्वेक्षण करता है.

युनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की भारत में प्रतिनिधि ऐंड्रिया वोजनार कहती हैं कि एजेंसी को इन आंकड़ों पर भरोसा है क्योंकि ये "बेहद ठोस तकनीक” से जुटाए गए हैं.

चीन की आबादी लगातार बूढ़ी हो रही है. सात साल पहले देश ने एक परिवार एक बच्चा नीति को खत्म कर दिया था दो साल पहले कहा गया कि एक परिवार में तीन बच्चे तक हो सकते हैं. उसके बावजूद देश की जनसंख्या स्थिर बनी हुई है. उसके मुकाबले भारत की आबादी युवा है. वहां की जन्म दर ऊंची है और पिछले तीन दशकों में शिशु मृत्यु दर में भारी कमी आई है.

टेक्सस ए एंड एम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डडली पोस्टन कहते हैं कि इस वक्त भारत में वार्षिक तौर पर दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं. जबकि चीन का हाल यूरोपीय देशों जैसा हो चुका है, जहां हर साल जन्म वाले बच्चों की दर मरने वाले लोगों से ज्यादा है.

वीके/सीके (एपी)