एक ऐतिहासिक फैसले में, उड़ीसा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सरोगेसी के माध्यम से मां बनने वाली महिलाओं को 180 दिनों का मातृत्व अवकाश (Maternal Leave) प्रदान करे, ताकि सभी नई माताओं के लिए समान व्यवहार सुनिश्चित हो सके. फैसले में यह भी रेखांकित किया गया कि मातृत्व के तरीके से छुट्टी के विशेषाधिकार निर्धारित नहीं किए जाने चाहिए. यह फैसला एक ऐसे मामले के जवाब में दिया गया था जिसमें उड़ीसा वित्त सेवा अधिकारी को सरोगेसी के माध्यम से मां बनने के बाद 180 दिनों के मातृत्व अवकाश से वंचित कर दिया गया था. मुंबई लोकल में यात्रियों को जानवरों की तरह यात्रा करते देखना शर्मनाक: बॉम्बे हाई कोर्ट.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एस के पाणिग्रही की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया कि सरोगेसी के माध्यम से मां बनने वाली कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए, ताकि माता-पिता बनने की उनकी विधि की परवाह किए बिना सभी नई माताओं के लिए समान व्यवहार और सहायता सुनिश्चित की जा सके.
अधिकारी सुप्रिया जेना ने 2020 में कोर्ट में याचिका दायर की थी, जब उड़ीसा सरकार ने उन्हें सरोगेट मां होने के आधार पर मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया था. कोर्ट ने 25 जून को उनके पक्ष में फैसला सुनाया और सरकार को सरोगेट मां को छुट्टी देने का निर्देश दिया, जो दत्तक मां के समान है.
जस्टिस पाणिग्रही ने जोर देकर कहा, "बच्चे के जन्म के बाद की शुरुआती अवधि देखभाल और पालन-पोषण में मां की भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. इस तथ्य की अदालत की मान्यता इस मुद्दे की उसकी समझ का प्रमाण है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार भी शामिल है."
अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह सभी माताओं के साथ समान व्यवहार करने के लिए इन पहलुओं को संबंधित नियमों में शामिल करे. उन्होंने कहा, "राज्य के संबंधित विभाग को यह निर्देश दिया जाता है कि वह नियमों के संबंधित प्रावधानों में इस पहलू को शामिल करे ताकि सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को प्राकृतिक प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे के समान माना जाए और सरोगेसी से जन्म लेने वाली मां को सभी लाभ प्रदान किए जाएं."