छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई साहिबा था. शाहूजी के जन्म का नाम यशवंतराव था. आबा साहब यशवंतराव के दादा थे. शाहू महराज शुद्र जाति के थे. चौथे शिवाजी की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज की पत्नी महारानी आनंदी बाई ने 1884 में शाहू महाराज को गोद ले लिया था. इसके बाद यशवंतराव का नाम छत्रपति शाहू महाराज रखा गया था. इन्हें कोल्हापुर संस्थान का वारिस बना दिया गया. उनकी प्राथमिक शिक्षा राजकोट में स्थापित राजकुमार कॉलेज में हुई. उच्च शिक्षा के लिए वो 1890 से 1894 वो धाड़बाड़ में रहे. उन्होंने अंग्रेजी, इतिहास और कारोबार चलाने की शिक्षा ग्रहण की. अप्रैल 1897 में उनका विवाह लक्ष्मीबाई से हुआ.
20 साल की उम्र में उन्होंने कोल्हापुर का राज काज संभाला. वहां उन्होंने अपने शासन में लगे सभी ब्राह्मणों को हटा दिया. ब्राह्मणों को हटाकर बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने का क्रांतिकारी कदम छत्रपति शाहूजी ने ही उठाया. साथ ही शूद्रों एवं दलितों के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलकर उन्हें मुक्ति की राह दिखाने में बहुत बड़ा कदम उठाया. आमतौर पर सभी राजाओं की छवि जनता से जबरन कर वसूलने और हड़पने के लिए जानी जाती है. लेकिन शाहू महाराज ने अपने शासन के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं किया. उन्होंने राज्य में बहुत सारे परिवर्तन किए. वो परिवर्तन के लिए समाज के सभी जाति के लोगों की सहभागिता चाहते थे, लेकिन उस वक्त उनके साशनकाल में सभी अधिकारी ब्राह्मण थे सिर्फ 11 लोग बहुजन समाज के थे. ब्राह्मणों ने चाल चली और छोटी जाति के लोगों को शिक्षा से दूर रखा. ताकि वो पढ़ लिखकर आगे बढ़ न सके. इस बात से शाहू महाराज बहुत परेशान हो गए. उन्होंने नीचे तबके के लोगों के लिए आरक्षण कानून बनाया. इस कानून के तहत बहुजन समाज के लोगों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया.
उस समय नीची जाती के साथ बहुत अत्याचार किया जाता था, उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था. समाज में सभी लोग उनका तिरस्कार करते थे. समाज में उन्हें सम्मान और सभी हक दिलाने के लिए शाहू महाराज ने दलितों की बहुत मदद की. इस बात को ब्राह्मण समाज के लोग बरदाश्त नहीं कर पाए और उनके ही राजपुरोहित ने उन्हें शुद्र कहकर अपमानित किया. इस घटना से शाहू महाराज के अंतरमन को धक्का पहुंचा. जिसके बाद उन्होंने पूरी निष्ठा से ब्राह्मणवाद को खत्म किया. उनके जीवन पर ज्योतिबा फुले का काफी प्रभाव था. फुले के देहांत के बाद महाराष्ट्र में चले सत्य शोधक समाज आंदोलन का कारवां चलाने वाला कोई नायक नेता नहीं था. 1910 से 1911 तक शाहू महाराज ने इस सत्यशोधक समाज आंदोलन का अध्ययन किया. 1911 में राजा शाहूजी ने अपने संस्थान में सत्य शोधक समाज की स्थापना की. कोल्हापुर संस्थान में शाहू महाराज ने जगह-जगह गांव-गांव में सत्यशोधक समाज की शाखाएं स्थापित की.
18 अप्रैल 1901 में मराठाज स्टुडेंटस इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्था की स्थापना की 1904 में जैन होस्टल, 1906 में मॉमेडन हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य मिल, क्लार्क हॉस्टल जैसी संस्था का निर्माण करके साहू जी महाराज ने शिक्षा फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया जो मिल का पत्थर साबित हुआ. पिछड़ी जाति के लोगों के लिए शाहू महराज ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. 1912 में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देने के बारे में कानून बनाया तथा उसे अमल में भी लाए. 1917 में पुनर्विवाह का कानून भी पास किया. 6 मई 1922 को बहुजन समाज के हितकारी राजा छत्रपति शाहू महाराज का देहांत हो गया.