छठे चरण में कई जगहों पर मुकाबला मोदी बनाम ममता बनर्जी है. यहां दोनों ही नेता बहुत ज्यादा सक्रिय रहे. पिछले चुनावों में इन सीटों पर बीजेपी ने दमखम दिखाया था, ऐसे में तृणमूल इन्हें फिर पाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही है.पश्चिम बंगाल में छठे चरण में पांच जिलों की जिन आठ सीटों पर मतदान हो रहा है वहां मुख्य लड़ाई उन दो नेताओं के बीच है जो चुनाव मैदान में ही नहीं हैं. यह दोनों नेता हैं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी. यहां इस बार इन दोनों की साख दांव पर है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के लिए तो यह बदले की भी लड़ाई है.
दरअसल इस दौर में वह तमलुक सीट भी है जिसके तहत नंदीग्राम इलाका आता है. वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में उस नंदीग्राम सीट पर ही शुभेंदु ने ममता को हराया था. जले पर नमक छिड़कने की तर्ज पर बीजेपी ने इस सीट पर कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय को मैदान में उतार दिया है. यह वही जज हैं जो अपने कार्यकाल के दौरान ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ फैसला देते रहे हैं. उनका सबसे आखिरी फैसला था शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में करीब 26 हजार शिक्षकों व गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती रद्द कर देना.
बीजेपी और तृणमूल दोनों पर ही हिंसा के आरोप
ममता बनर्जी और उनकी टीएमसी ने पूर्व जज अभिजीत गांगुली के खिलाफ अपने चुनाव अभियान में खासकर हजारों नौकरियां छीनने वाले उनके फैसले को ही अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था. तमलुक में नौकरी गंवाने वाले सैकड़ों शिक्षकों ने गांगुली के खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया था. धरनास्थल वाली जगह से बीजेपी की रैली निकलने के दौरान दोनों गुटों में जमकर हिंसा हुई थी. उसके बाद पूर्व जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी. लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने फिलहाल इस मामले में गांगुली के खिलाफ 14 जून तक किसी भी कारवाई पर रोक लगा दी है.
दूसरी ओर, नंदीग्राम में मतदान से ठीक पहले हिंसा और आगजनी भी हुई है. दो दिन पहले तृणमूल कांग्रेस के कथित कार्यकर्ताओं ने इलाके में बीजेपी की एक महिला कार्यकर्ता की हत्या कर दी थी. इस मामले में तृणमूल के स्थानीय नेताओं के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई गई है. इससे पहले बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इलाके में बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ की थी. परिस्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था. हिंसा के एक अन्य मामले में पुलिस ने बीजेपी के एक स्थानीय नेता को गिरफ्तार भी किया है.
अधिकारी परिवार का गढ़
इसी चरण में जंगलमहल के नाम से कुख्यात पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया और झारग्राम जिलों में भी मतदान होना है जो किसी दौर में राज्य मांओवाद का केंद्र थे. छठे चरण के मतदान की अहमियत इसलिए भी बढ़ी है कि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार यहां तस्वीर एकदम बदल गई है. पिछली बार शुभेंदु, उनके दो भाई सौम्येंदु व दिब्येंदु और पिता शिशिर अधिकारी तृणमूल कांग्रेस में थे. लेकिन अब अधिकारी परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. इस परिवार की इलाके में काफी मजबूत जमीनी पकड़ है.
अधिकारी परिवार के पाला बदलने के बाद तमलुक सीट पर तो बीजेपी ने पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय को मैदान में उतारा है जबकि कांथी सीट पर शुभेंदु के सबसे छोटे भाई दिब्येंदु अधिकारी को टिकट दिया है. तमलुक में पिछली बार दिब्येंदु अधिकारी तृणमूल के टिकट पर जीते थे. इसी जिले की कांथी सीट तब शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी (तृणमूल कांग्रेस) ने जीती थी.
इलाके में बढ़ रहा बीजेपी का दबदबा
तमलुक से तृणमूल कांग्रेस के विधायक सौमेन महापात्र डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हमारे लिए यह चुनाव नंदीग्राम के विधानसभा चुनाव के नतीजे का बदला लेने का सुनहरा मौका है. उनका सवाल है कि पूर्व जज गांगुली आजीवन शहरी इलाकों में रहे हैं. वो इस ग्रामीण इलाके की समस्याएं कैसे समझ सकते हैं?"
वर्ष 2019 में इलाके की आठ में से पांच सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे. तृणमूल कांग्रेस को पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर में - तमलुक, कांथी और घाटाल सीटें मिली थी. इनमें से तमलुक और कांथी को विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है.
छठे चरण की अहमियत को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और जे.पी.नड्डा तक इलाके में रैलियां कर चुके हैं. दूसरी ओर ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने भी यहां लगभग हर इलाके में दर्जन भर चुनावी सभाओं को संबोधित किया है. यह वह इलाके हैं जहां इन दिनों तापमान लगातार 45 डिग्री या उससे ऊपर बना हुआ है.
पुरुलिया में सहयोगियों से ही लड़ रहा इंडिया गठबंधन
इस दौर में कांथी और तमलुक के अलावा सबसे दिलचस्प मुकाबला पुरुलिया संसदीय सीट पर है. झारखंड की सीमा से सटा यह इलाका हाल के महीनों में कुर्मी आंदोलन के लिए सुर्खियों में रहा है. यहां कुर्मी जाति के वोट ही निर्णायक हैं. यही वजह है कि इस सीट पर छह महतो उम्मीदवार ही मैदान में हैं. बीजेपी ने यहां पिछली बार के विजेता ज्योतिर्मय सिंह महतो को मैदान उतारा है जबकि तृणमूल की ओर से शांति राम महतो अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि यहां वाममोर्चा के घटक फॉरवर्ड ब्लॉक ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है जबकि वाम-कांग्रेस समझौते के तहत यह सीट कांग्रेस को मिली है. यहां सीपीएम के नेता अपने सहयोगी फॉरवर्ड ब्लॉक का प्रचार करने की बजाय कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांग रहे हैं. यानी यह बंगाल की अकेली ऐसी सीट है जहां इंडिया गठबंधन के तीनों सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में इलाके की सात में से पांच सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा था. इससे इलाके में उसकी स्थिति का पता चलता है.
बांकुड़ा और विष्णुपुर में भी बीजेपी मजबूत
बांकुड़ा जिले में दो सीटें हैं बांकुड़ा और विष्णुपुर. यह दोनों सीटें पिछली बार बीजेपी ने ही जीती थी. बांकुड़ा में सुभाष सरकार ने ममता बनर्जी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुब्रत मुखर्जी को हराया था. बीजेपी ने इस बार भी सरकार को ही टिकट दिया है जबकि तृणमूल कांग्रेस की ओर से अरूप चक्रवर्ती और माकपा के नीलांजन दासगुप्ता मैदान में हैं.
विष्णुपुर संसदीय सीट पर बीजेपी उम्मीदवार सौमित्र खान वर्ष 2014 और 2019 में चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन पहली बार तृणमूल के टिकट पर और दूसरी बार बीजेपी के. वर्ष 2019 में उनकी पत्नी सुजाता मंडल ने भी उनके चुनाव अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. लेकिन अब उनका तलाक हो चुका है और सुजाता तृणमूल के टिकट पर उसी दम-खम से अपने पूर्व पति को चुनौती दे रही हैं. इससे यहां भी मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
जितने वोट उतने पेड़ का वादा कर एक्टर मैदान में
पश्चिम मेदिनीपुर जिले की घाटाल सीट पर बांग्ला फिल्मों के अभिनेता दीपक अधिकारी उर्फ देव लगातार दो बार जीत चुके हैं और इस बार हैट्रिक लगाने के प्रयास में हैं. इस सीट पर बीजेपी ने भी हिरण चटर्जी नाम के एक अभिनेता को उतारा है.
लेकिन इस हाई प्रोफाइल नेता के दो-दो बार सांसद रहने के बावजूद इलाके की समस्याएं जस की तस हैं. इससे आम लोगों में असंतोष है. यह इलाका हर साल बाढ़ में डूब जाता है. वैसे, देव ने इस बार वादा किया है कि उनको चुनाव में जितने वोट मिलेंगे, इलाके में उतने ही पेड़ लगाए जाएंगे. इससे बाढ़ व तटकटाव की समस्या पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकेगा.
खूब फैल रही फेक न्यूज
इस चरण में तमाम क्षेत्रीय मुद्दे ही हावी है. कहीं सरकारी नौकरियों में भर्ती में भ्रष्टाचार और रोजगार का मुद्दा है तो कहीं विकास, पीने के पानी, खस्ताहाल सड़कों और बाढ़ से बचाव का. कुछ सीटों पर दोनों प्रमुख दल अंतर्कलह से भी जूझ रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने डीडब्ल्यू से कहा, "इस बार का चुनाव किसी ठोस मुद्दे पर नहीं राजनीतिक दलों की ओर से एक-दूसरे खिलाफ चलाए जा रहे कुप्रचार पर लड़ा जा रहा है. विभिन्न मुद्दों पर तमाम दावेदार अपने सियासी हित में भ्रामक सूचनाएं फैला रहे हैं."