सिपरी: हथियारों की नई होड़ के बीच परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की मानें तो दुनिया में परमाणु हथियारों की एक खतरनाक होड़ शुरू हो गई है. इसके साथ ही एआई और स्पेस टेक्नॉलजी भी परमाणु ताकत को पूरी तरह से बदल रही है.दुनिया के कुल नौ परमाणु हथियार संपन्न देशों में से लगभग सभी ने 2024 से अपने परमाणु हथियारों को बेहतर बनाने का काम तेज कर दिया है. इसमें पुराने हथियारों को अपडेट करना और नए हथियारों को जोड़ा जाना शामिल है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) हर साल हथियारों, निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति का आकलन करता है. साल 2025 की अपनी रिपोर्ट में उसने बताया है कि 1980 के मध्य में दुनिया भर में परमाणु हथियारों की संख्या लगभग 64,000 थी, जो कि अब घटकर करीब 12,241 हो गई है.

सिपरी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह गिरावट अब रुकने की कगार पर है और भविष्य में संख्या फिर से बढ़ सकती है. सिपरी के निदेशक, डैन स्मिथ ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस समय परमाणु हथियारों को लेकर सबसे चिंता की बात यह है कि पिछले कई दशकों से जो गिरावट हो रही थी, अब वह थम गई है.”

परमाणु हथियार घटाने की प्रक्रिया में कमी

1991 में सोवियत संघ के टूटने और शीत युद्ध खत्म होने के बाद से अब तक, दुनिया में पुराने और रिटायर किए गए परमाणु हथियारों को नष्ट किया जाता रहा है. यह काम नए हथियारों की तैनाती से ज्यादा तेजी से हुआ यानी नए हथियारों की तैनाती के मुकाबले पुराने हथियार अधिक हटाए गए. लेकिन अब यह सिलसिला धीमा हो गया है. स्मिथ के अनुसार, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आखिरी कार्यकाल के बाद से परमाणु हथियारों को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया और तेज हो गई है.

वो बताते हैं कि अब नए तरह की मिसाइल और उन्हें ले जाने वाले सिस्टम जैसे रॉकेट या जहाज अधिक तेजी से तैयार किए जा रहे हैं और उन पर भारी पैसा खर्च किया जा रहा है. स्मिथ ने कहा, "कई सालों पहले से ही दुनिया भर में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती जा रही थी और परमाणु हथियार रखने वाले देश अपने हथियारों को आधुनिक बनाने की इस प्रक्रिया को तेज कर रहे थे. यह केवल मामूली सुधार नहीं है, बल्कि काफी बड़े स्तर के बदलाव हैं.”

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सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 तक दुनिया भर में अनुमानित 12,241 परमाणु हथियार मौजूद थे. जिसमें से करीब 9,614 हथियार सैन्य उपयोग के लिए तैनात थे यानी यह या तो मिसाइलों पर लगे हुए थे, या सैन्य ठिकानों पर रखे थे, या ऐसे गोदामों में थे जहां से जरूरत पड़ने पर तुरंत तैनात किए जा सकते हैं. इनमें से लगभग 3,912 परमाणु हथियार मिसाइलों और लड़ाकू विमानों के साथ तैनात थे. और इनमें से भी करीब 2,100 हथियार "हाई अलर्ट” स्थिति में थे, यानी तुरंत उपयोग के लिए बैलिस्टिक मिसाइलों पर तैयार थे. सिपरी के अनुसार इन हथियारों में से लगभग सभी रूस और अमेरिका के पास हैं, लेकिन अब ऐसा माना जा रहा है कि चीन भी कुछ परमाणु हथियार मिसाइलों पर तैनात कर सकता है.

दुनिया के जितने देशों के पास परमाणु हथियार हैं जैसे अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इस्राएल. इसमें कुल परमाणु हथियारों का 90 फीसदी हिस्सा केवल रूस और अमेरिका के पास है.

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सिपरी के विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अब और भी कई देश परमाणु हथियार बनाने या उन्हें अपने देश में रखने पर विचार कर रहे हैं. कई देशों में अब परमाणु नीति और रणनीति को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है.

जिसका मतलब हुआ कि नई तरह की परमाणु साझेदारी सामने आ सकती है. रूस का दावा है कि उसने बेलारूस की जमीन पर अपने परमाणु हथियार तैनात कर दिए हैं. वहीं, यूरोप में कई नाटो सदस्य देशों ने संकेत दिए हैं कि वह अमेरिका के परमाणु हथियारों को अपने देश में रख सकते हैं.

अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति में आई गिरावट

2007 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने अमेरिका के वर्चस्व वाले वैश्विक व्यवस्था, नाटो के पूर्व की ओर विस्तार और निरस्त्रीकरण की कड़ी आलोचना की थी. लेकिन उसके दो साल बाद, 2009 में ही तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति, बराक ओबामा ने चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में एक ऐतिहासिक भाषण में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य रखा दिया और कहा कि "हजारों परमाणु हथियारों का अस्तित्व शीत युद्ध की सबसे खतरनाक विरासत है.”

इसके साथ ही ओबामा ने यह वादा भी किया कि अमेरिका परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया की दिशा में ठोस कदम उठाएगा और रूस के साथ मिलकर नया रणनीतिक हथियार नियंत्रण समझौता करेगा. न्यू स्टार्ट नामकी यह संधि 2010 में हस्ताक्षरित हुई और 2011 में लागू भी कर दी गई. लेकिन जब 2022 की फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तब अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन ने अपनी 2022 की न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू रणनीति जारी की. इसमें अमेरिका के परमाणु हथियारों के भंडार को आधुनिक बनाना सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाई गई.ईरान और अमेरिका की बातचीत आखिर इस वक्त क्यों?

फरवरी 2023 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक कानून पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत रूस ने न्यू स्टार्ट परमाणु संधि में अपनी भागीदारी को स्थगित कर दिया. डैन स्मिथ ने कहा, "साल 2007-08 से ही दुनिया में असुरक्षा का माहौल धीरे-धीरे बन रहा था. जो कि 2014 से आगे बढ़ते-बढ़ते फरवरी 2022 में एकदम से सामने आ गया. मुझे लगता है कि तब आम लोगों को भी यह एहसास हो गया कि स्थिति पिछले एक दशक से बिगड़ रही थी.”

मुख्य बात यह है कि दुनिया के परमाणु हथियारों के भंडार बढाए जा रहे हैं और आधुनिक बनाए जा रहे हैं. सिपरी का अनुमान है कि चीन के पास अब कम से कम 600 परमाणु हथियार हैं और उसका परमाणु भंडार दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है.

भारत ने भी 2024 में अपने परमाणु हथियारों की संख्या कुछ हद तक बढ़ाई है. वहीं पाकिस्तान भी नए मिसाइल सिस्टम बना रहा है और फिसाइल मटेरियल (परमाणु हथियारों में इस्तेमाल होने वाला विखंडनीय पदार्थ) जमा कर रहा है.

इस्राएल ने 13 जून को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए. जिसमें ईरानी सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए. अब भी अपनी परमाणु क्षमता पर जानबूझकर चुप्पी बनाए रखता है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि वह भी अपने परमाणु हथियारों को आधुनिक बना रहा है, और नेगेव रेगिस्तान में स्थित प्लूटोनियम उत्पादन केंद्र को भी बेहतर बना रहा है.

एआई और स्पेस टेक्नोलॉजी से और बढ़ाया परमाणु युद्ध का खतरा

सिपरी ने अपनी 2025 की सालाना किताब की भूमिका में, निदेशक डैन स्मिथ ने चेतावनी दी है कि अब जो परमाणु हथियारों की नयी दौड़ शुरू हो रही है. वह शीत युद्ध के समय से कहीं ज्यादा खतरनाक और अनिश्चित है. जिसका एक बड़ा खतरा एआई, साइबर तकनीक और अंतरिक्ष तकनीकों का तेज विकास भी है. स्मिथ ने कहा, "परमाणु हथियारों की दौड़ में अब सिर्फ मिसाइलों, पनडुब्बियों या बम वाले विमान की बात नहीं होगी. बल्कि इसमें अब एआई, साइबरस्पेस और अंतरिक्ष की दौड़ भी शामिल होगी यानी अब सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि सॉफ्टवेयर भी उतना ही अहम होंगे, जितने हार्डवेयर.”

इसका मतलब है कि अब यह समझना और तय करना कहीं अधिक मुश्किल हो गया है कि परमाणु हथियारों और उनके स्टॉक की निगरानी और नियंत्रण कैसे किया जाए क्योंकि पहले यह मुकाबला मुख्य रूप से कितने हथियार हैं तक ही सीमित था. लेकिन अब यह हथियारों की गिनती से कई अधिक जटिल हो गया है.

हाल के वर्षों में एआई को लेकर लंबी बहस चल रही है, खासकर "किलर रोबोट्स" (लीथल ऑटोनोमस वेपन्स सिस्टम) के बारे में यानी ऐसे हथियार जो बिना इंसानी नियंत्रण के खुद हमला कर सकते हैं. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद से ड्रोन और स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल बढ़ा है. लेकिन अभी तक एआई के परमाणु हथियारों से सीधे जुड़ने पर कुछ खास जानकारी सामने नहीं आई है.

एआई काफी ज्यादा जानकारी को काफी तेजी से प्रोसेस कर सकता है. जिससे नीति निर्धारकों को तेज और बेहतर फैसले लेने में मदद मिल सकती है. लेकिन अगर ऐसा कोई सिस्टम पूरी तरह एलएलएम, मशीन लर्निंग और एआई पर निर्भर हो और उसमें कोई छोटी-सी भी तकनीकी गड़बड़ी आ जाए, तो उसका नतीजा एक परमाणु हमले के रूप में सामने आ सकता है. स्मिथ ने कहा, "मुझे लगता है कि एक स्पष्ट सीमा होनी चाहिए. जिस पर सभी राजनीतिक और सैन्य नेताओं की भी सहमति होगी कि परमाणु हमले का फैसला एआई पर निर्भर नहीं होना चाहिए.”

1983 की एक सच्ची घटना का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जब सोवियत के लेफ्टिनेंट कर्नल स्टानिस्लाव पेत्रोव मास्को के पास एक परमाणु चेतावनी केंद्र में ड्यूटी पर थे. उस समय सिस्टम ने अमेरिका से एक अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल लॉन्च होने की चेतावनी दी थी, जिसके पीछे चार और मिसाइलें भी थीं. पेत्रोव को शक हुआ कि यह चेतावनी गलत हो सकती है, और उन्होंने तुरंत ऊपर सूचना भेजने की बजाय इंतजार किया. उनके इस सोच-समझकर लिए गए फैसले ने जवाब में परमाणु हमला होने से रोक दिया. स्मिथ ने कहा, "सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर दुनिया एआई पर चल रही होगी तो लेफ्टिनेंट कर्नल पेत्रोव की भूमिका कौन निभाएगा?”