सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगा. इससे पहले पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मुद्दे की सुनवाई में बहुत देर कर दी है. मैं समझती हूं कि कई बार सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसलों में कहा है कि 370 को जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के अलावा और कोई नहीं हटा सकता तो फैसला तो सीधा होना चाहिए कि 5 अगस्त को जो किया गया वह संविधान और जम्मू-कश्मीर के खिलाफ था."
वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा, "मेरे पास ऐसी कोई मशीनरी नहीं है जो मुझे बता सके कि उन पांच जजों के दिल में क्या है या उन्होंने फैसले में क्या लिखा है. मैं सिर्फ आशा और प्रार्थना कर सकता हूं कि निर्णय हमारे पक्ष में हो" यह भी पढ़ें- 'हमेशा बेहतर की तलाश करें..', पोतियों संग शतंरज खेलते अमित शाह ने शेयर की प्यारी-सी तस्वीर, दिया ये मैसेज
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#WATCH | PDP chief Mehbooba Mufti says, "The Supreme Court has delayed the hearing of this issue. It took them five years. In the previous judgements, it was said by the Supreme Court that Article 370 cannot be removed without the constitutional assembly of J&K...I want to tell… pic.twitter.com/P3nCFfm6bZ
— ANI (@ANI) December 9, 2023
#WATCH | On Article 370, National Conference vice-president Omar Abdullah says, "No one can say with surety that they know what will happen. I have no machinery that would tell me what the ice judges might be thinking or what they've written in the judgment. I can only hope &… pic.twitter.com/NR60qxIw4p
— ANI (@ANI) December 9, 2023
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 दिसंबर, सोमवार की सूची के अनुसार, चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी. पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य की दलीलों को सुना था. याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी.
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था.