Delhi Election Results 2022:- दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जबरदस्त हार हुई है. लगभग 21 दिनों तक चले आक्रामक प्रचार के बावजूद दिल्ली में बीजेपी की नैया डूब गई. लेकिन क्या बीजेपी लगातार हार का सिलिसला तोड़ पाने के लिए कोई मजबूत कदम उठाएगी. या फिर विधानसभा चुनाव में राष्ट्रिय मुद्दों के सहारे वोट बटोरने की कोशिश करेगी. दरअसल इस बार के चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. आने वाले समय में बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाला है. ऐसे में अगर बीजेपी स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच में नहीं उतरती है तो उन्हें हार का मुंह फिर देखना पड़ सकता है. क्योंकि राज्यों में राष्ट्रिय मुद्दे पर चुनाव जीतना मुश्किल है. राज्य की जनता खुद से जुड़ी फायदे और अपने जेब पर पड़ने वाले असर को सबसे पहले देखता है.
बीजेपी के हाथ से पिछले साल महाराष्ट्र, झारखंड और साल 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ को गवां दिया था. इस दौरान भी बीजेपी ने सर्जिकल स्ट्राइक, राम मंदिर, पाकिस्तान और आतंकवाद को मुद्दा बनाकर वोट मांगा था. यहां पर कांग्रेस ने बिजली के बिल, किसानों के कर्ज और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया था. जिसे जनता ने स्वीकारा और सत्ता की चाभी सौंप थी.
बता दें कि दिल्ली की जनता के बीच केजरीवाल सरकार कई ऐसे सौगातों के साथ गई जो लोगों के आम जीवन पर सीधा असर करता है. जिनमे बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात. दिल्ली में प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करती हैं. इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने सबसे ज्यादा लाभ निजी स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाकर मध्यमवर्गीय जनता को दिया. केजरीवाल ने फीस पर नकेल कस दी. इसका लाभ मध्यमवर्गीय परिवारों को हुआ. इसके साथ ही दिल्ली में कुल 52 लाख 27 हजार 857 घरेलू बिजली कनेक्शन में से 14,64,270 परिवारों का बिजली बिल शून्य आया जो लोगों पर सीधे असर डाली.
यही नहीं जनता को दो सौ यूनिट बिजली, महीने में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त कर दिया जिसका असर जनता के जेब पर पड़ा.
बीजेपी ने की ये भूल
बीजेपी ने दिल्ली में जीत के लिए ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार कर रखी थी, इसके बावजदू पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता तक मैदान में उतर गए थे. शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को मुद्दा बनाया और उसे भुनाने के लिए पूरी कोशिश की. जहां अमित शाह ने केवल 11 दिनों में 53 तो वहीं अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 63 सभाएं की. लेकिन उनकी दाल नहीं गली और जनता ने मतदान कर के उन्हें सिरे से नकार दिया.