2019 में भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के लिए उत्तर प्रदेश के दो बड़े दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक छत के नीचे आने की तैयारी कर चुके हैं. मोदी के खिलाफ अखिलेश यादव और मायावती के बीच सैध्दांतिक सहमती बनती नजर आ रही है. यह भी तय माना जा रहा है कि कांग्रेस और अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रिय लोक दल का भी इसी गठबंधन के साथ जाना लगभग तय माना जा रहा हैं. अखिलेश और मायावती का प्रयास है कि और भी छोटे दलों को साथ लेकर मोदी-शाह के सामने कड़ी चुनौती पेश की जाए. हालांकि, सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कोई सहमती नहीं बनी हैं.
एक ओर जहां महागठबंधन बीजेपी और उनके समर्थन वाले दलों को हराने के लिए चक्रव्यूह रच रहा है तो वहीं पिछले 20 दिनों में 2 घटनाएं ऐसी हुई हैं जिससे 2019 में उत्तर प्रदेश की सियासत की तस्वीर बदल सकती हैं. ये 2 घटना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं. आइए उन्हीं पर नजर डाल लेते हैं.
यह भी पढ़े: चंद्रशेखर आजाद की रिहाई है बीजेपी का बड़ा सियासी दांव
शिवपाल यादव का समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाना:
समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव द्वारा साइड-ट्रैक किए हुए शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चे के गठन का ऐलान किया. हालांकि इस मोर्चे के गठन की घोषणा शिवपाल 2017 के चुनाव से पहले भी कर चुके हैं. अब उन्होंने इसे उपेक्षा के चलते सक्रिय करने की बात कही है. समाजवादी सेक्युलर मोर्चे से समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में बिखराव हो सकता है. इसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को भुगतना पड़ सकता हैं.
चंद्रशेखर आजाद का जेल से रिहा होना:
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को पिछले सप्ताह जेल से रिहा कर दिया गया. सियासी जानकारों की माने तो बीजेपी ने ऐसा एक सोची समझी चुनावी रणनीति के तहत किया है. चंद्रशेखर आजाद की पश्चिम यूपी के दलित समाज के लोगों पर अच्छी पकड़ हैं. चंद्रशेखर का उभारना मायावती की सियासत के लिए सबसे बड़ा खतरा है. दलित समाज ख़ास कर युवा वर्ग चंद्रशेखर आजाद को उम्मीदों भरी निगाह से देख रहा हैं. पश्चिम यूपी में भीम आर्मी का खड़ा होना बीएसपी के लिए चिंता का विषय है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा चुनावों में शिवपाल यादव और चंद्रशेखर आजाद महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा पाते हैं.