मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- पीड़ितों और संदिग्धों की व्यक्तिगत जानकारी और तस्वीर अखबारों-डिजिटल प्लेटफार्म को देना आर्टिकल 21 का उल्लंघन
प्रतीकात्मक तस्वीर (File Photo)

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने कहा है कि मीडिया के सामने संदिग्धों को लाना भारतीय संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. न्यायमूर्ति जी.एस.अहलूवालिया ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "मीडिया के समक्ष पीड़ितों और संदिग्धों को लाकर पुलिस ने न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संदिग्ध के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि मीडिया ट्रायल्स को भी बढ़ावा दिया है." यह भी पढ़ें: Allahabad High Court on Conversion: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन मान्य नहीं

अदालत ने ध्यान दिया कि आम जनता एक जांच की प्रगति के बारे में जानने के लिए हकदार है, लेकिन मीडिया के सामने संदिग्ध या पीड़ितों को प्रस्तुत करना कानून के किसी भी वैधानिक प्रावधान के तहत कोई आधार नहीं है, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता शामिल है. न्यायमूर्ति ने कहा, यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति कट्टर अपराधी है, तो भी उसके विवरण / हिस्ट्रीशीट / सर्विलांस को विवेकपूर्ण रखा जाना चाहिए और हिस्ट्रीशीटरों की तस्वीरें पुलिस स्टेशनों पर पोस्ट करने का कोई सवाल ही नहीं है.

अदालत इस बात की जांच कर रही थी कि क्या राज्य सरकार, एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से, किसी अभियुक्त की निजता का उल्लंघन कर सकती है, जो मीडिया में उसकी तस्वीर प्रकाशित कर सकती है या उसे परेड कर सकती है. यह नोट किया गया कि पुलिस ने प्रिंट, सोशल या डिजिटल मीडिया में संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान का खुलासा कर खुद की पीठ थपथपाने" के बजाय, ट्रायल कोर्ट के समक्ष पुलिस गवाहों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि व्यक्ति का अपराध साबित हो सके.