मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें एक नाबालिग लड़की ने अपनी शादी को अवैध घोषित करने की मांग की थी. कोर्ट ने कहा कि अगर नाबालिग लड़की की शादी किसी वयस्क पुरुष से होती है, तो यह शादी मानसिक और शारीरिक क्रूरता का कारण बन सकती है और तलाक का आधार हो सकती है. यह मामला इंदौर स्थित मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के समक्ष आया, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपनी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 या 12 के तहत शून्य या शून्यकरणीय घोषित करने की मांग की. महिला का कहना था कि वह शादी के समय नाबालिग थी और उसके पति ने अपनी एक आंख की दृष्टिहीनता की बात छिपाई थी.
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जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अगर किसी नाबालिग लड़की की शादी एक वयस्क पुरुष से होती है, तो उसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक का अधिकार होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की शादी मानसिक और शारीरिक क्रूरता का कारण बन सकती है, क्योंकि नाबालिग लड़की वैवाहिक दायित्वों को निभाने के लिए तैयार नहीं होती है.
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को हिंदू विवाह अधिनियम के बजाय बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA) की धारा 3 के तहत याचिका दायर करनी चाहिए थी. इस अधिनियम के तहत बाल विवाह को शून्यकरणीय घोषित करने का प्रावधान है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस तरह की शादी से जन्म लेने वाले बच्चे को वैधता मिले, कोर्ट को निर्देश देने का अधिकार दिया गया है.
इस मामले में याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी और शादी के समय याचिकाकर्ता केवल 15 साल की थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने अपनी एक आंख की दृष्टिहीनता की जानकारी छिपाई थी. शादी के बाद, याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के साथ रहने लगी और बाद में उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 और 12 के तहत अपनी शादी को शून्य या शून्यकरणीय घोषित करने की मांग की.
हालांकि, निचली अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत उम्र की शर्तों के उल्लंघन के आधार पर शादी को शून्य या शून्यकरणीय घोषित नहीं किया जा सकता है.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए शादी को शून्य घोषित किया. कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत नाबालिग पार्टी के विकल्प पर बाल विवाह को शून्यकरणीय घोषित किया जा सकता है, लेकिन याचिकाकर्ता ने अपनी मूल याचिका में इस प्रावधान का उपयोग नहीं किया था.