Rewadi Culture: देश को दीमक की तरह खा रही है 'रेवाड़ी कल्चर', अधर में लटकी विकास परियोजनाएं; मुफ्तखोरी के कारण दिल्ली समेत कई राज्य घाटे में (Watch Video)
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Rewadi Culture: केजरीवाल की सरकार दिल्ली की जनता को पिछले 10 साल से मुफ्त बिजली, पानी और बस यात्रा जैसी सुविधाएं दे रही थी. नतीजा ये रहा कि 31 साल में पहली बार दिल्ली सरकार घाटे में चली गई है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल सरकार की आमदनी ₹62 हज़ार करोड़ रहने का अनुमान है, जबकि खर्च ₹64 हज़ार करोड़ तक पहुंच सकता है. वहीं, बीजेपी की चुनावी घोषणाओं को पूरा करने के लिए ₹25 हज़ार करोड़ और चाहिए. इसका सीधा असर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पड़ सकता है.

दरअसल, इस चुनाव में बीजेपी ने कहा कि महिलाओं को हर महीने ₹2500 देंगे, जबकि आप ने ₹2100 का वादा किया था. नतीजा बीजेपी के पक्ष में गया, लेकिन असली सवाल यह है कि इन वादों का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ रहा है?

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दिल्ली घाटे में, कई राज्यों की सरकारें मुश्किल में

क्या कहती है ORF की रिपोर्ट?

 

ORF की रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली सरकार ने सड़क और पुल जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए जितना बजट रखा था, उससे 39% कम खर्च किया. इसका असर यह हुआ कि सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही है और नए पुलों का काम धीमा पड़ गया है.

रेवड़ी कल्चर पूरे देश में

अब ये रेवड़ी फॉर्मूला सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है. मध्य प्रदेश में महिलाओं को कैश देने की स्कीम सफल रही, तो 13 राज्यों ने इसे अपना लिया. हर साल इन योजनाओं पर करीब दो लाख करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. इसका असर यह हुआ कि कई राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब होने लगी है. हिमाचल प्रदेश की सरकार वित्तीय संकट में है. महाराष्ट्र में ठेकेदारों के बिल अटके पड़े हैं.

महाराष्ट्र सरकार ने बुजुर्गों की मुफ्त तीर्थयात्रा योजना रोक दी है और अब सस्ती थाली और राशन किट स्कीम बंद करने पर विचार कर रही है. इसके अलावा लाड़ली बहन योजना चलाने के लिए कई अन्य योजनाओं में कटौती की जा रही है.

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रेवड़ी पर आरबीआई की चेतावनी

श्रीलंका की आर्थिक स्थिति बिगड़ने के बाद भारत में भी रेवड़ी कल्चर पर चर्चा शुरू हुई थी. रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकारें बिना सोचे-समझे फ्री सुविधाएं बांटती रहीं, तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि सरकारों को यह देखना चाहिए कि क्या किसी चीज़ का मुफ्त देना जनता के लिए फायदेमंद है या सिर्फ चुनावी हथकंडा?

उदाहरण के लिए: सस्ता राशन, रोज़गार गारंटी, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ जरूरी खर्चे माने जाते हैं. मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त यात्रा और किसानों की कर्जमाफी को 'रेवड़ी' माना गया है.

समस्या कहां है?

सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक बार सरकार कोई मुफ्त सुविधा देना शुरू कर देती है, तो उसे बंद करना लगभग नामुमकिन हो जाता है. कोई भी राजनीतिक दल चुनाव हारने का जोखिम नहीं लेना चाहता, इसलिए सरकारों को जरूरी खर्चों में कटौती करनी पड़ती है. विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों को लोगों की आमदनी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, न कि उन्हें मुफ्त की रेवड़ियां बांटनी चाहिए.

अगर यही सिलसिला जारी रहा, तो कई राज्य दिल्ली की तरह घाटे में जा सकते हैं.