मनुष्य के मन में हर वक्त एक जिज्ञासा सी रहती है, वह हर पल कुछ नया करना चाहता है, कुछ नया जानना और कुछ नया समझना चाहते हैं. उसके मन में हर पल कोई ना कोई द्वंद्व चलता रहता है, इन्हीं द्वंद्वों के बीच एक वैज्ञानिक जन्म लेता है. इन्हीं में एक महान वैज्ञानिक थे सर सीवी रमन, जिन्हें अपनी दुर्लभ उपलब्धियों के कारण नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सीवी रमन ने अपना संपूर्ण जीवन विज्ञान को समर्पित कर दिया. महान वैज्ञानिक सीवी रमन की 137वीं वर्षगांठ पर आइये जानते हैं, सिफर से शिखर तक पहुंचने की उनकी प्रेरक गाथा
जन्म एवं शिक्षा से पहले शोध-पत्र तक
चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु) में हुआ था. उनके पिता चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर भौतिकी और गणित के शिक्षक थे. उन्होंने अपने बेटे की वैज्ञानिक रुचि को प्रोत्साहित किया. माँ पार्वती अम्मल गृहिणी थीं. 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी कर 13 साल की उम्र में मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिक में बी.ए. और 1907 में सर्वोच्च सम्मान के साथ एम.ए. की उपाधि प्राप्त की. एम ए के दौरान उन्होंने अपना पहला शोध पत्र 'द फिलोसॉफिकल मैगजीन' में प्रकाशित कराया, जो कॉलेज का पहला अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन था. यह भी पढ़ें : Diabetes Control Tips: सुबह किए गए ये दो काम शुगर के मरीजों के लिए हैं संजीवनी, बीमारी पर रहेगा कंट्रोल
एकाउंटेंट से नोबेल पुरस्कार तक
शिक्षा पूरी करने के बाद साल 1907 में सीवी रमन ने भारत सरकार के वित्त विभाग में अकाउंटेंट के रूप में कार्यभार संभाला. साल 1917 में वह कलकत्ता यूनिवर्सिटी में भौतिक के प्रोफेसर बने. साल 1928 में उन्होंने रामन् प्रभाव नामक अभूतपूर्व खोज की, जब एक माध्यम में एक किरण बिखरी हुई होती है तो प्रकाश की तरंग में परिवर्तन की घटना होती है. इस दुर्लभ खोज के लिए साल 1930 में भौतिकी के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया. 1935 में वे भौतिकी विभाग में प्रमुख के रूप में बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में चले गये. 1947 में उन्हें वहां रामन संस्थान का उन्हें निदेशक नामित किया गया. उन्होंने अपने समय में लगभग हर भारतीय शोध संस्थान के निर्माण में योगदान दिया. साल 1948 में वह बंगलोर रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक बने, और 21 नवंबर 1970 में अपनी मृत्यु पर्यंत तक वह इस पद पर बने रहे. साल 1954 में उन्हें भारत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.













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