SC on Refugees Case: भारत धर्मशाला नहीं है, जो पूरी दुनिया के रिफ्यूजी यहां आएं; शरणार्थियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की दो  टूक, खारिज की श्रीलंकाई नागरिक की याचिका (Watch Video)
सुप्रीम कोर्ट (Photo: Wikimedia Commons)

India Is Not a 'Dharamshala': भारत में रह रहे शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनियाभर के हर विदेशी नागरिक को बसने दिया जाए. यह टिप्पणी जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने की. बेंच ने सख्त लहजे में कहा, "क्या भारत दुनियाभर के शरणार्थियों की मेजबानी करेगा? हम पहले ही 140 करोड़ लोगों की जरूरतों से जूझ रहे हैं. यह कोई धर्मशाला नहीं है."

याचिका में मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत सजा पूरी करने के बाद भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया था.

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श्रीलंकाई नागरिक की दलीलें खारिज

याचिकाकर्ता श्रीलंकाई नागरिक ने कोर्ट में दलील दी कि वह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) का पूर्व सदस्य है. ऐसे में अगर उसे वापस श्रीलंका भेजा गया तो उसे वहां गिरफ्तारी और यातनाएं झेलनी पड़ेंगी. उसने दावा किया कि उसकी पत्नी और बच्चे भारत में रह रहे हैं.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और दो टूक कहा कि केवल भारतीय नागरिकों को ही भारत में बसने का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है. पीठ ने यहां तक ​​कहा, "आपको यहां बसने का क्या अधिकार है? किसी दूसरे देश में चले जाइए."

HC ने देश छोड़ने का दिया था आदेश

 

बता दें, याचिकाकर्ता को गैरकानूनी संगठन का सदस्य होने के कारण यूएपीए की धारा 10 के तहत सजा सुनाई गई थी. पहले उसे 10 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने इसे घटाकर 7 साल कर दिया और उसे तुरंत भारत छोड़ने का निर्देश दिया था.

अब यह मामला एक बार फिर भारत में विदेशी शरणार्थियों की स्थिति, राष्ट्रीय सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की सीमाओं पर बहस को तेज कर सकता है.

SC ने राष्ट्रीय सुरक्षा को बताया सर्वोपरि

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार की नीति के अनुरूप है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि महत्व दिया गया है.

यह फैसला उन मामलों में मिसाल कायम कर सकता है, जहां विदेशी नागरिक, चाहे शरणार्थी के रूप में हों या किसी संगठन से जुड़े हों, अपनी सजा पूरी करने के बाद भारत में रहने की कोशिश करते हैं.