एच1बी वीजा के भविष्य पर ट्रंप की ओर ताक रहा है भारत

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आप्रवासियों पर सोच को लेकर बहुत बहस हो रही है और एच1बी वीजा भी इस बहस का एक मुद्दा है.

देश Deutsche Welle|
एच1बी वीजा के भविष्य पर ट्रंप की ओर ताक रहा है भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आप्रवासियों पर सोच को लेकर बहुत बहस हो रही है और एच1बी वीजा भी इस बहस का एक मुद्दा है. यह भारत के कुशल कामगारों के लिए बेहद अहम है.पिछले महीने जब ट्रंप ने भारतीय मूल के वेंचर कैपिटलिस्ट श्रीराम कृष्णन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुद्दे पर सलाहकार नियुक्त किया तो उनके दक्षिणपंथी समर्थकों ने इसकी कड़ी आलोचना की. उनका कहना था कि इस नियुक्ति से ट्रंप की आप्रवासन नीतियों को लेकर दिखाई जा रही सख्ती पर असर पड़ेगा. ट्रंप के पुराने विश्वासपात्र रहे स्टीव बैनन ने "बड़ी तकनीकी कंपनियों के ओलिगार्कों" की आलोचना की, जो एच1बी कार्यक्रम का समर्थन करते हैं, और इसे पश्चिमी सभ्यता के लिए खतरे के रूप में पेश किया.

इसके जवाब में टेस्ला और स्पेसएक्स के अरबपति सीईओ इलॉन मस्क ने विदेशी तकनीकी कर्मचारियों के लिए एच1बी वीजा कार्यक्रम का बचाव करने के लिए "युद्ध" छेड़ने तक की धमकी दी. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर मस्क ने लिखा, "मैं अमेरिका में हूं और स्पेसएक्स, टेस्ला और सैकड़ों अन्य कंपनियों को बनाने वाले इतने सारे महत्वपूर्ण लोग भी यहीं हैं, और इसका कारण एच1बी है." उन्होंने आगे कहा, "मैं इस मुद्दे पर युद्ध करूंगा, जैसा आपने कभी नहीं सोचा होगा."

आजकल दुनियाभर की दक्षिणपंथी पार्टियों का समर्थन करने वाले मस्क खुद दक्षिण अफ्रीका में जन्मे और अब अमेरिकी नागरिक हैं. वह भी एच1बी वीजा धारक रहे हैं और उनकी इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला ने 2024 में 724 एच1बी वीजा हासिल किए थे. मस्क का ट्वीट ट्रंप के दक्षिणपंथी समर्थकों और आप्रवासन विरोधियों के खिलाफ था, जो एच1बी वीजा कार्यक्रम को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. यह विवाद दिखाता है कि आप्रवासन विरोधी ट्रंप की सरकार में एच1बी वीजा को लेकर खासा तनाव है.

अमेरिका का एच1बी वीजा पिछले कई दशकों से कुशल श्रमिकों के लिए वहां जाने का महत्वपूर्णass="menu_sub_nav_blk">

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एच1बी वीजा के भविष्य पर ट्रंप की ओर ताक रहा है भारत

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आप्रवासियों पर सोच को लेकर बहुत बहस हो रही है और एच1बी वीजा भी इस बहस का एक मुद्दा है.

देश Deutsche Welle|
एच1बी वीजा के भविष्य पर ट्रंप की ओर ताक रहा है भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आप्रवासियों पर सोच को लेकर बहुत बहस हो रही है और एच1बी वीजा भी इस बहस का एक मुद्दा है. यह भारत के कुशल कामगारों के लिए बेहद अहम है.पिछले महीने जब ट्रंप ने भारतीय मूल के वेंचर कैपिटलिस्ट श्रीराम कृष्णन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुद्दे पर सलाहकार नियुक्त किया तो उनके दक्षिणपंथी समर्थकों ने इसकी कड़ी आलोचना की. उनका कहना था कि इस नियुक्ति से ट्रंप की आप्रवासन नीतियों को लेकर दिखाई जा रही सख्ती पर असर पड़ेगा. ट्रंप के पुराने विश्वासपात्र रहे स्टीव बैनन ने "बड़ी तकनीकी कंपनियों के ओलिगार्कों" की आलोचना की, जो एच1बी कार्यक्रम का समर्थन करते हैं, और इसे पश्चिमी सभ्यता के लिए खतरे के रूप में पेश किया.

इसके जवाब में टेस्ला और स्पेसएक्स के अरबपति सीईओ इलॉन मस्क ने विदेशी तकनीकी कर्मचारियों के लिए एच1बी वीजा कार्यक्रम का बचाव करने के लिए "युद्ध" छेड़ने तक की धमकी दी. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर मस्क ने लिखा, "मैं अमेरिका में हूं और स्पेसएक्स, टेस्ला और सैकड़ों अन्य कंपनियों को बनाने वाले इतने सारे महत्वपूर्ण लोग भी यहीं हैं, और इसका कारण एच1बी है." उन्होंने आगे कहा, "मैं इस मुद्दे पर युद्ध करूंगा, जैसा आपने कभी नहीं सोचा होगा."

आजकल दुनियाभर की दक्षिणपंथी पार्टियों का समर्थन करने वाले मस्क खुद दक्षिण अफ्रीका में जन्मे और अब अमेरिकी नागरिक हैं. वह भी एच1बी वीजा धारक रहे हैं और उनकी इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला ने 2024 में 724 एच1बी वीजा हासिल किए थे. मस्क का ट्वीट ट्रंप के दक्षिणपंथी समर्थकों और आप्रवासन विरोधियों के खिलाफ था, जो एच1बी वीजा कार्यक्रम को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. यह विवाद दिखाता है कि आप्रवासन विरोधी ट्रंप की सरकार में एच1बी वीजा को लेकर खासा तनाव है.

अमेरिका का एच1बी वीजा पिछले कई दशकों से कुशल श्रमिकों के लिए वहां जाने का महत्वपूर्ण रास्ता रहा है, खासकर भारत से. यह वीजा विदेशी श्रमिकों को, विशेष रूप से तकनीकी और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में ऊंची डिग्री वाले लोगों को अमेरिका में रहने और काम करने की इजाजत देता है. यह वीजा तीन साल के लिए होता है, जिसे आमतौर पर बढ़वाया जा सकता है या फिर वीजा धारक ग्रीन कार्ड यानी अमेरिका में स्थाई निवास के लिए अप्लाई कर सकते हैं.

हाल ही में इस प्रक्रिया में कई बदलाव आए हैं, जिनका असर भविष्य में इस कार्यक्रम पर पड़ेगा, खासकर राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में.

एच1बी वीजा प्रक्रिया में बदलाव

मार्च 2024 में, अमेरिकी नागरिकता और आप्रवसान सेवा (यूएचसीआईएस) ने एच1बी वीजा पंजीकरण प्रक्रिया में बदलाव किए हैं, जिसका उद्देश्य धोखाधड़ी को कम करना और चयन प्रक्रिया को अधिक न्यायपूर्ण बनाना था. एक बड़ा बदलाव था 'बेनेफिशियरी-सेंट्रिक' नजरिया अपनाना, यानी हर व्यक्ति को सिर्फ एक पंजीकरण करने की अनुमति हो, ताकि आवेदकों के लिए प्रक्रिया अधिक समान हो सके. इसके अलावा, दोहरे पंजीकरण और धोखाधड़ी की कोशिशों को रोकने के लिए कड़े नियम लागू किए गए हैं.

अमेरिकी आप्रवासन परिषद की रिपोर्ट बताती है कि इन बदलावों के कारण 2025 में एच1बी के पंजीकरणों में 38 फीसदी की कमी आएगी, जिससे यह संकेत मिलता है कि अब प्रक्रिया कम प्रतिस्पर्धी और अधिक पारदर्शी हो गई है. इस नए सिस्टम का असर उन देशों पर पड़ेगा जो इस कार्यक्रम पर बहुत निर्भर हैं. इनमें भारत सबसे ऊपर है. अधिकारियों का कहना है कि इन बदलावों से आवेदन की संख्या कम हो सकती है, लेकिन योग्य उम्मीदवारों के लिए समान अवसर मिलेंगे.

ट्रंप का एच1बी वीजा पर रुख

राष्ट्रपति ट्रंप का एच1बी वीजा के प्रति रुख उनके पहले कार्यकाल से बदल चुका है. पहले ट्रंप "बाइ अमेरिकन, हायर अमेरिकन" के सिद्धांत को बढ़ावा दे रहे थे, जिसके तहत एच1बी वीजा पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे. लेकिन ट्रंप के हालिया बयानों से यह संकेत मिलता है कि उनका रुख बदल सकता है. इसी महीने में एक इंटरव्यू में उन्होंने एच1बी कार्यक्रम का समर्थन किया और इसे एक अच्छा कदम बताया. साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद अपने व्यवसायों के लिए इस वीजा का उपयोग किया था.

यह बदलाव महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले ट्रंप ने इस कार्यक्रम को निलंबित करने या सीमित करने की वकालत की थी. 2024 में ट्रंप के फिर से चुनाव जीतने के बाद उनका रुख बदला है. साथ ही टेक कंपनियों के दिग्गजों जैसे इलॉन मस्क ने इस कार्यक्रम का समर्थन किया है, जिसके बाद एच1बी वीजा चाहने वालों की उम्मीदें कुछ बढ़ी हैं.

यदि ट्रंप प्रशासन एच1बी वीजा प्रक्रिया को सख्त करता है, तो भारतीय पेशेवरों को वीजा हासिल करने में मुश्किल हो सकती है. इस कारण आवेदनों की जांच कड़ी हो सकती है, या वीजा की संख्या में कमी हो सकती है. इसके उलट, यदि ट्रंप का समर्थन इस कार्यक्रम के लिए जारी रहता है, तो भारत का टेक उद्योग अमेरिका में कुशल श्रमिकों को भेजने के लिए अवसर पा सकता है, जिससे आर्थिक रिश्ते और मजबूत होंगे.

भारत के लिए महत्व

भारत के लिए एच1बी वीजा का भविष्य बहुत महत्वपूर्ण है. वह इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी है. 2023 में कुल जारी किए गए एच1बी वीजा का लगभग 78 फीसदी भारत के पेशेवरों को मिला था. भारतीय पेशेवर, खासकर आईटी और इंजीनियरिंग क्षेत्र के लोग इस वीजा का इस्तेमाल अमेरिका में काम करने के लिए करते हैं और दोनों देशों की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं. यूं भी अमेरिका में रहने वाला भारतीय समुदाय सबसे कामयाबप्रवासी समुदाय कहा जाता है.

एच1बी वीजा सिस्टम में कोई भी बदलाव, जैसे कड़े नियम या वीजा की संख्या में कमी, भारत के लिए गंभीर हो सकता है. भारत के पास उच्च कौशल वाले श्रमिकों की बड़ी संख्या है, और वह लंबे समय से अमेरिकी टेक इकोसिस्टम में एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है. यदि एच1बी वीजा पर सख्ती होती है, तो इससे भारत के बहुत से कुशल पेशेवरों को अमेरिका जाने का अवसर नहीं मिलेगा या वे अन्य देशों में काम ढूंढ़ने पर मजबूर हो सकते हैं.

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात को फिर से सुनिश्चित किया है कि दोनों देशों के बीच कुशल श्रमिकों की आवाजाही महत्वपूर्ण है. भारतीय राजनयिक ट्रंप प्रशासन के साथ सक्रिय रूप से बातचीत कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एच1बी कार्यक्रम से दोनों देशों को जो लाभ मिलते हैं, वह बनाए रखा जाए.

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इसी महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हमारे देशों के बीच एक मजबूत और बढ़ती हुई आर्थिक और तकनीकी साझेदारी है, और इसके तहत कुशल पेशेवरों की आवाजाही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है."

उन्होंने कहा, "भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों को (इस वीजा से) बहुत फायदा होता है, क्योंकि कुशल पेशेवरों द्वारा उपलब्ध कराई गई तकनीकी विशेषज्ञता दोनों पक्षों को अपनी ताकत और कॉम्पीटिशन का लाभ उठाने का अवसर देती है. हम भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों को और गहरा करने की उम्मीद रखते हैं, जो हमारे दोनों के लिए लाभकारी हैं."

आईटी सेक्टर पर असर

एच1बी वीजा भारतीय आईटी सेक्टर के लिए सबसे अहम माना जाता है. भारत की कई बड़ी तकनीकी कंपनियां, जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो इस वीजा का प्रयोग अमेरिकी बाजार में अपने पेशेवर भेजने के लिए करती हैं. भारतीय स्टार्टअप भी इससे लाभ उठाते हैं और सिलिकॉन वैली में वैश्विक दिग्गजों से मुकाबला करते हैं. 2023 में करीब 266,000 एच1बी वीजा जारी किए गए, और इनका बड़ा हिस्सा भारतीय नागरिकों को विज्ञान व तकनीक के क्षेत्रों में काम करने के लिए मिला.

एच1बी वीजा की संख्या में कमी से भारत की आईटी कंपनियों को नुकसान हो सकता है, जो उनकी वृद्धि में रुकावट डाल सकती है और उन्हें दूसरे बाजारों में हाथ आजमाना पड़ सकता है. इससे भारत के सॉफ्टवेयर निर्यात उद्योग पर भी असर पड़ेगा, जो देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है.

फिलहाल, एच1बी वीजा का भविष्य ट्रंप प्रशासन में अनिश्चित है, और भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के लिए इसमें कई अवसर और चुनौतियां हो सकती हैं. हालांकि ट्रंप ने एच1बी वीजा कार्यक्रम के प्रति समर्थन दिखाया है, फिर भी उनके जनाआधार में आप्रवासन के खिलाफ लामबंदी के कारण मुमकिन है कि इस कार्यक्रम में बदलाव हो.

वीके/एनआर (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)

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