नई दिल्ली, 11 जनवरी: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि परीक्षक टिक मार्क लगाने के बाद भी सही उत्तर इंगित करने में असफल रहता है तो छात्र को पूरे अंक दिए जाने चाहिए. न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा कि परीक्षक की गलती की सजा छात्र को नहीं मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि छात्र संदेह का लाभ पाने का हकदार है. अदालत ने स्पष्ट किया कि परीक्षक द्वारा की गई किसी भी त्रुटि के बावजूद, जब तक उत्तर पुस्तिका स्पष्ट रूप से उत्तर को गलत नहीं बताती, तब तक छात्र को प्रश्न के लिए आवंटित अंक प्राप्त होने चाहिए.
यह सुनिश्चित करने के महत्व की ओर इशारा करते हुए कि छात्र को किसी परीक्षक की गलती के लिए दंडित नहीं किया जाए, न्यायमूर्ति शंकर ने कहा, "छात्र को परिणाम भुगतने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता". अदालत ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के भूगोल के पेपर में एक छात्रा को पूरे अंक दिए. छात्रा ने तर्क दिया था कि परीक्षक ने उसके उत्तर के सामने दो टिक मार्क लगाए थे, जो पूर्ण अंक के उसके दावे को सही ठहराता है.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने मार्जिन में निशान न होने का हवाला देते हुए इसका विरोध किया. सीबीएसई के तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने उत्तर की शुद्धता निर्धारित करने में परीक्षक के अधिकार पर जोर दिया. अदालत ने कहा कि यदि उत्तर सही है, तो छात्र अंकों का हकदार है. साथ ही यह भी कहा कि यदि अधिकतम के नीचे कोई अंक नहीं लिखा गया है, तो छात्र को पूरे अंक मिलने चाहिए. न्यायमूर्ति शंकर ने अंतिम फैसले में सीबीएसई को विवादित प्रश्न के लिए पांच अंक जोड़कर छात्र को सही मार्कशीट जारी करने का निर्देश दिया.