Report On Dehradun Landslide Study: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), देहरादून ने जलविद्युत परियोजनाओं के आसपास के इलाकों में भूस्खलन की घटनाओं पर एक अध्ययन किया है और “रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाली कार्यरत/निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं में भूस्खलन के अध्ययन पर रिपोर्ट” तैयार की है.
आईआईआरएस ने एनएचपीसी के नौ (09) बिजली उत्पादन केन्द्रों/परियोजनाओं में यह अध्ययन किया. इन परियोजनाओं में अरुणाचल प्रदेश की सुबनसिरी लोअर, सिक्किम की तीस्ता-V एवं रंगित, जम्मू-कश्मीर की सलल, दुलहस्ती एवं उरी-II, हिमाचल प्रदेश की चमेरा-I एवं परबत-II और उत्तराखंड में धौलीगंगा शामिल हैं. ये भी पढ़ें- Changes in NCERT Books: किसी को खुश या नाराज करने को किताबों में संशोधन नहीं किया गया- एनसीईआरटी चीफ
इस अध्ययन में इन परियोजनाओं के निर्माण की शुरुआत से 10 साल पहले की अवधि से लेकर इन परियोजनाओं / बिजली उत्पादन केन्द्रों की वर्तमान स्थिति तक भूस्खलनों की सूची मानचित्र तैयार करने का काम किया गया. अध्ययन की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि ज्यादातर मामलों में इन परियोजनाओं के निर्माण से पहले पाए गए भूस्खलन वाले क्षेत्र की तुलना में अब भूस्खलन वाले क्षेत्र में काफी कमी आई है.
अध्ययन से यह पता चला है कि इन जलविद्युत परियोजनाओं के आसपास होने वाली भूस्खलन संबंधी गतिविधियों का संबंध इन परियोजनाओं के निर्माण की गतिविधियों से नहीं है. स्थलाकृति, भूवैज्ञानिक स्थितियां और वर्षा इन भूस्खलन संबंधी गतिविधियों के प्रमुख कारक/ प्रेरक कारक रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, कालगत आंकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश मामलों में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण एवं उससे संबंधित गतिविधियां और इन परियोजनाओं के शुरू हो जाने के बाद की हाइड्रोलॉजिकल स्थितियों ने इस क्षेत्र को स्थिर करने में मदद की होगी. इसके अलावा, जलविद्युत परियोजनाओं का आकार, जलाशय का आकार, स्थानीय भूविज्ञान, मिट्टी और भूमि आच्छादन की स्थिति (विशेष रूप से वनस्पति आच्छादन) ने इन परियोजनाओं से जुड़े क्षेत्रों में भूस्खलन को कम करने में कुछ ढलान स्थिरीकरण संबंधी भूमिका निभाई होगी.
यह रिपोर्ट उपग्रह छवि पर आधारित व्याख्या की मदद से तैयार की गई है, जो उपग्रह छवि के रिजोल्यूशन और उनकी उपलब्धता पर निर्भर है.