Ground Report: गोरखपुर में क्या है चुनावी माहौल जहां मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा है दांव पर
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योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक कई बार गोरखपुर से सांसद रहे हैं. फिलहाल वहां भोजपुरी फिल्मों के कलाकर रविकिशन बीजेपी से सांसद हैं. इस बार उनका मुकाबला इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार काजल निषाद से है.गोरखपुर शहर की पहचान गोरखनाथ मंदिर, आस्था का एक बड़ा केंद्र तो है ही राजनीति का भी बड़ा केंद्र है. साल 1989 से लेकर 2014 तक गोरखपुर लोकसभा सीट पर गोरखनाथ मठ का ही कब्जा रहा है. पहले महंत अवैद्यनाथ और फिर उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ यहां से सांसद रहे. 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में मंदिर से बाहर के उम्मीदवार को बीजेपी ने मैदान में उतारा और उनकी हार हुई. लेकिन 2019 में बीजेपी के टिकट पर रविकिशन जीतकर संसद पहुंचे. एक बार फिर रविकिशन बीजेपी के उम्मीदवार हैं और उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी की नेता काजल निषाद से है.

गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था और योगी आदित्यनाथ की ताकत का केंद्र पहले ही रहा है, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये ताकत और बढ़ी है जिसका असर इस इलाके में साफ दिखता है. मंदिर के आस-पास काफी सुंदरीकरण हुआ है, तमाम दुकानें वहां से हटा दी गई हैं और आस-पास के इलाकों में सुरक्षा-व्यवस्था भी पहले की तुलना में काफी ज्यादा है. मंदिर के ठीक सामने गोरखनाथ थाना बना है जिसे देखकर ही लगता है कि यह मुख्यमंत्री के चुनावी राजनीतिक क्षेत्र में स्थित है. यह भी पढ़ें : Prajwal Revanna Arrested: जर्मनी से बेंगलुरु लौटते ही प्रज्वल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल केस में एयरपोर्ट पर गिरफ्तार, आज कोर्ट में होगी पेशी

गोरखनाथ मंदिर के तीनों तरफ मुसलमानों की घनी आबादी है. मंदिर के मुख्य द्वार से लगी चारदीवारी के दूसरी तरफ एक कब्रिस्तान से इन मोहल्लों की शुरुआत होती है. मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ की छवि एक कट्टर हिन्दू नेता की रही है और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी इस छवि में बढ़ोत्तरी ही हुई है. बावजूद इसके इस इलाके के मुसलमानों को उनकी इस छवि से पहले कोई शिकायत थी और न ही अब है.

मंदिर के पीछे ही एक मोहल्ला है रसूलपुर. यहां एक पावरलूम चलाने वाले मोहम्मद अनीस कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ पहले हमारे सांसद थे और अब राज्य के मुख्यमंत्री हैं. मंच पर वो क्या बोलते हैं ये उनकी राजनीतिक विचारधारा है लेकिन हमारे साथ उनका व्यवहार पहले भी एक जनप्रतिनिधि जैसा था और अब भी वैसा ही है. हमारी किसी भी समस्या का निराकरण वैसे ही होता है जैसे इस इलाके के दूसरे लोगों का. हां, ये जरूर है कि हमें उनके मुख्यमंत्री बनने का कोई अतिरिक्त फायदा मिला हो तो ऐसा भी नहीं है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि हमारे लिए न तो अच्छे हैं और न ही खराब, उनके सीएम रहने से हमें न तो कोई फायदा है और न ही कोई नुकसान.”

कुछ ही दूरी पर एक और पावरलूम संचालक गुलशन से मुलाकात हुई. योगी आदित्यनाथ के बारे में उनकी भी राय कुछ वैसी ही थी जैसी कि मोहम्मद अनीस की. लेकिन गुलशन की एक शिकायत है जो दूसरे पावरलूम चलाने वालों की भी है. वो कहते हैं, "पहले पावरलूम की छोटी मशीन का बिल 74 रुपये हर माह फिक्स था जो अब बढ़ाकर 440 रुपये कर दिया गया है. बड़ी मशीन का बिल 144 रुपये था जिसे बढ़ाकर 880 रुपये कर दिया गया था. यह हमारे लिए बहुत ज्यादा है. हम लोग मांग कर रहे हैं कि इसे कम किया जाए लेकिन अभी तक कम नहीं हुआ है. तमाम लूम वैसे ही बंद हो गए हैं, यदि बिजली की दर कम न हुई तो और भी लूम बंद हो जाएंगे.”

गोरखनाथ मंदिर के आस-पास विकास की जो तस्वीर दिखती है उसकी चमक पीछे की ओर रसूलपुर तक आते-आते काफी धूमिल हो जाती है. सड़क टूटी हुई है, सड़क पर पानी फैला हुआ है, लोग बचाकर इधर-उधर चल रहे हैं. आस-पास दुकानें हैं और दुकानों के सामने भी पानी लगा है. एक ठेले पर सब्जी खरीद रहीं फातिमा बेगम को फक्र है कि उनके पड़ोस में मंदिर के महंत देश के इतने बड़े नेता हैं. वो कहती हैं, "योगी जी मुसलमानों के खिलाफ बोलते जरूर हैं लेकिन यहां के मुसलमानों के प्रति तो उनके मन में कभी कोई गलत भाव नहीं रहा. जो सरकारी सुविधाएं सबको मिल रही हैं, वो हमें भी मिल रही हैं. बाहर लोगों को पता चलता है कि हम योगी जी के पड़ोसी हैं तो उनके बातचीत का अंदाज बदल जाता है. हां, यहां साफ-सफाई उतनी नहीं है, सड़क टूटी है लेकिन उम्मीद है कि जल्दी ही बन जाएगी.”

हालांकि ऐसा नहीं है कि यहां के सभी मुसलमान योगी जी कार्यप्रणाली से खुश ही हों. कई लोग विकास के नाम पर हुई तोड़-फोड़ और कायदे से मुआवजा न मिलने की शिकायतें भी करते हैं, लेकिन यह भी चाहते हैं कि उनका नाम जाहिर न हो.

गोरखपुर जिले में लोकसभा की दो सीट हैं, एक गोरखपुर शहर और दूसरी सीट है बांसगांव. रविकिशन बीजेपी से दूसरी बार लड़ रहे हैं तो बांसगांव लोकसभा सीट से कमलेश पासवान लगातार चौथी बार सांसद बनने की तैयारी में हैं. हालांकि इस बार उनकी राह बड़ी मुश्किल है. इसकी वजह लोगों की उनके प्रति नाराजगी, इंडिया गठबंधन से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सदल प्रसाद की उपस्थिति और केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में लोगों की दिलचस्पी को बताया जा रहा है.

बहरहाल, गोरखपुर सीट से साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भोजपुरी फिल्‍मों के अभिनेता रवि किशन बीजेपी उम्मीदवार थे और उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रामभुआल निषाद को 3 लाख से भी ज्‍यादा वोटों से हराया था. रविकिशन इस बार भी बीजेपी से लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी की काजल निषाद से है. गोरखपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत जिले की 5 विधानसभा सीटें आती हैं- कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवा. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.

बीजेपी की इतनी मजबूत स्थिति के बावजूद रविकिशन की लड़ाई कठिन बताई जा रही है.

गोरखपुर लोकसभा सीट पर साढ़े चार लाख से ज्यादा निषाद मतदाता हैं और किसी उम्मीदवार की जीत-हार में इनकी भूमिका प्रमुख होती है. हालांकि पिछली बार भी समाजवादी पार्टी ने रामभुआल निषाद को ही मैदान में उतारा था और इस बार भी रविकिशन के सामने भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री काजल निषाद हैं.

गोरखपुर के एक कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले डॉक्टर रामेश्वर कहते हैं, "निषाद मतदाताओं के साथ यदि करीब ढाई लाख यादव मतदाता और डेढ़ लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता साथ आ जाएं तो खेल बदल सकता है. समाजवादी पार्टी ने अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं पर भी अपनी पकड़ मजबूत की है. लेकिन यदि हिन्दू मतों का रुझान पिछली बार की तरह इस बार भी बीजेपी की ओर ही रहा तो फिर बीजेपी को जीतने से कोई रोक नहीं सकता.”

जहां तक निषाद मतदाताओं का सवाल है तो बीजेपी ने निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद को गठबंधन में शामिल करके निषाद मतदाताओं पर पकड़ बढ़ाने की कोशिश जरूर की है लेकिन इस समुदाय का रुझान फिलहाल सपा उम्मीदवार काजल निषाद की ओर ही दिख रहा है.

दूसरी ओर, गोरखपुर के कुछ स्थानीय लोग बताते हैं कि रविकिशन को बीजेपी की अंदरूनी राजनीति का भी सामना करना पड़ रहा है. गोलघर के रहने वाले बीजेपी के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "रविकिशन गोरखपुर के बाहर के रहने वाले हैं. यहां के तमाम बीजेपी नेता यहां तक कि कुछ बड़े नेता भी नहीं चाहते कि वो दोबारा चुनाव जीतें. क्योंकि यदि वो जीत जाते हैं तो स्थानीय नेताओं के लिए गोरखपूर में सांसदी के मौके कठिन हो जाएंगे.”

गोरखपुर सीट पर 2 लाख के आसपास दलित मतदाता भी हैं. बहुजन समाज पार्टी ने जावेद सिमनानी को अपना उम्मीदवार बनाया है लेकिन मुस्लिम मतदाताओं का रुझान फिलहाल इंडिया गठबंधन की ओर ही दिख रहा है. यहां तक कि बसपा का कोर वोटर भी बसपा से दूरी बनाए हुए ही दिख रहा है. गोरखपुर के ग्रामीण इलाके के रहने वाले रौनक दलित समुदाय से आते हैं और गोरखपुर विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं. वो कहते हैं, "बीएसपी चुनाव में कहीं दिख नहीं रही है जिसका उसे नुकसान हो रहा है. दलित मतदाताओं को लगता है कि बीजेपी इस बार जीत गई तो संविधान बदल देगी, आरक्षण खत्म कर देगी, इसलिए दलित मतदाता बीजेपी के विरोध में वोट कर रहे हैं.”

समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार काजल निषाद को भी भरोसा है कि दलित मतदाताओं का साथ उन्हें मिल रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में काजल निषाद कहती हैं कि न सिर्फ गोरखपुर में बल्कि प्रदेश भर में दलित समुदाय इंडिया गठबंधन को वोट दे रहा है. हालांकि इन सबके बावजूद लोगों का कहना है कि यदि रविकिशन को मंदिर यानी गोरखनाथ मठ का आशीर्वाद मिला तो उनकी जीत को कोई रोक नहीं सकता.