मुंबई, 16 फरवरी : छत्रपति शिवाजी महाराज की 393वीं जयंती पहली बार आगरा किले के 'दीवान-ए-आम' में मनाई जाएगी. महाराष्ट्र सरकार और कई सामाजिक संगठनों के वर्षों के प्रयासों के बाद यह संभव हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार ने आगरा किले में शिव जयंती समारोह की अनुमति दी है. कई सामाजिक समूहों ने सरकार से आगरा के किले में 'दीवान-ए-आम' में भव्य तरीके से कार्यक्रम मनाने का आग्रह किया था, लेकिन इस अपील को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खारिज कर दिया, जो विरासत स्मारक की देखभाल करता है.
बाद में, उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने एएसआई को निर्देश दिया कि यदि महाराष्ट्र सरकार सह-आयोजक के रूप में शामिल है, तो समारोह की अनुमति दें. इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एएसआई और अन्य अधिकारियों को लिखा कि राज्य सरकार कुछ सामाजिक समूहों के साथ इस आयोजन से जुड़ेगी. सितंबर 2020 में, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किले में मौजूदा मुगल संग्रहालय का नाम बदलकर 'छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय' करने का फैसला किया था. आगरा के किले का मुगल और मराठा साम्राज्य के इतिहास में एक विशेष महत्व है, जो लंबे समय तक आपस में भिड़े रहे थे. यह भी पढ़ें : टीपू सुल्तान वाले बयान को लेकर भाजपा मंत्री अश्वथ नारायण के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज
1666 की गर्मियों में मराठा राजा शिवाजी को मुगल सम्राट औरंगजेब ने आगरा में शाही दरबार में उनके 50वें जन्मदिन समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. शिवाजी, अपने बेटे राजकुमार संभाजी के साथ, 12 मई, 1666 को जन्मदिन के लिए आगरा पहुंचे और छल से दोनों को सम्राट औरंगजेब के सैनिकों द्वारा बंदी बना लिया गया. 17 अगस्त, 1666 को मिठाई के बक्सों में भागने से पहले शिवाजी और संभाजी अपने वफादार सैनिकों के साथ लगभग तीन महीने तक बंदी बने रहे. वीर मराठा नेता को छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में 1674 में रायगढ़ में ताज पहनाया गया था.