बृंदा करात का बड़ा बयान, कहा- लैंगिक समानता सुनिश्चित करनी है तो युवकों की शादी की उम्र घटाकर 18 साल कर दी जाए
बृंदा करात (Photo Credits: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार (Central Government) के लड़कियों की शादी (Marriage) की उम्र बढ़ाने का फैसले पर एक ओर जहां विवादित बयान सामने आ रहे हैं, वहीं राजनीतिक दल (Political Party) और महिला समाजसेवियों (Women Social Workers) की मिली-जुली राय के बीच ये सर्वमान्य है कि महिलाओं की शिक्षा (Education) और स्वास्थ्य (Health) पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है या फिर अगर सरकार लैंगिक समानता (Gender Equality) सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे पुरुषों की शादी की उम्र 21 से घटाकर 18 साल कर देनी चाहिए. समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद शफीक उर रहमान (Shafiq ur Rehman) कड़ा ऐतराज जताया है. समाजवादी पार्टी के सांसद शफीक उर रहमान ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि यह बिल्कुल गलत है. इससे लड़कियों पर बुरा असल पड़ेगा, वे आवारा हो जाएंगी. मोदी कैबिनेट का बड़ा फैसला, अब 18 से 21 हुई लड़कियों की शादी की उम्र, प्रस्ताव पास

लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु को वर्तमान 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक का मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने विरोध किया है. इस मसले पर पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने आईएएनएस से कहा कि इस तरह के विधेयक के लिए सरकार द्वारा दिए गए कारण आश्वस्त करने वाले नहीं हैं. यह मसौदा हितधारकों के साथ गहन जांच और परामर्श के लिए विधेयक को संसद की संबंधित स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि 18 साल की उम्र में एक महिला कानूनी रूप से एक वयस्क है. विवाह के प्रयोजनों के लिए, उसे एक किशोर के रूप में व्यवहार करना आत्म-विरोधाभासी है और ये प्रस्ताव अपने साथी की व्यक्तिगत पसंद करने के लिए एक वयस्क के अधिकार का हनन करता है. यह प्रस्ताव एक महिला को अपने जीवन के पाठ्यक्रम को तय करने से वंचित करता है.

येचुरी ने कहा, यहां तक कि जब न्यूनतम आयु 18 वर्ष थी, तब भी आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2017 में पूरे भारत में लड़कियों की शादी की औसत आयु 21 वर्ष थी. इसलिए ऐसा कानून अनावश्यक है. यदि इस विधेयक पर विचार स्वास्थ्य कारणों से है, जैसा कि सरकार का दावा है, तो मातृ एवं शिशु मृत्युदर को रोकने के लिए पोषण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. महिलाओं की विवाह योग्य आयु बढ़ाना समाधान नहीं है.

वहीं इस मसले पर सीपीआईएम पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने आईएएनएस से कहा कि सरकार का ये प्रस्ताव महिलाओं के सशक्तिकरण में कोई मदद नहीं करेगा. वयस्कों की निजी पसंद को अपराध के दायरे में लाना बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार लैंगिक समानता सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे लड़कों की शादी की उम्र 21 से घटाकर 18 साल कर देनी चाहिए. सरकार को लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के पोषण पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.

इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार में बाल विकास एवं महिला कल्याण राज्यमंत्री (स्वंतत्र प्रभार) स्वाति सिंह ने कहा कि मोदी सरकार महिलाओं के हक में का कानून बनाना चाहती है. तीन तलाक पर कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिया. इससे वे भी आज अपने हक की बात करने लगी हैं. लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने पर लड़कियों में समानता की भावना बढ़ेगी. लड़कों के शादी की उम्र तो पहले से ही 21 वर्ष है. अब लड़कियों की भी हो जाएगी, जैसा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दोनों की शादी की न्यूनतम उम्र एक समान करने की सिफारिश की थी.

उन्होंने कहा कि लड़कियों के शादी की न्यूनतम उम्र कम होने से उनके उच्च शिक्षा में भी बाधक बनता है. इस नए कानून के बन जाने से लड़कियों की भी अच्छी शिक्षा मिलने की दर बढ़ जाएगी. ये महिलाओं के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इससे उनके विकास का रास्ता प्रशस्त होगा.

गौरतलब है कि जया जेटली की अध्यक्षता में बनी एक टास्क फोर्स ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट दी थी कि लड़की की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर देनी चाहिए, क्योंकि छोटी उम्र में लड़कियों को प्रेगनेंसी में समस्याएं होती हैं. मातृ मृत्युदर बढ़ने की आशंका रहती है, पोषण के स्तर में भी सुधार की जरूरत होती है, टीनएज में लड़की अपने फैसले भी नहीं ले पाती. इसी के बाद केंद्र सरकार ने इसे कैबिनेट से मंजूरी दे दी.

इस मसले पर जया जेटली ने आईएएनएस से कहा, लैंगिक समानता और लिंग सशक्तिकरण के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया है, क्योंकि ये एक बहुत ही अजीब संदेश देता है कि लड़की 18 साल की उम्र में शादी के लिए फिट हो सकती है. इस वजह से उसके आगे पढ़ने के अवसर कम हो जाते हैं. लड़कियां इतना कुछ करने में सक्षम हैं, पर शादी की वजह से परिवार के लिए आय कमाने वाली सदस्य नहीं हैं.

उन्होंने कहा, हमने बहुत से लोगों से राय ली. हमने युवा लोगों यूनिवर्सिटी, कॉलेजों और ग्रामीण क्षेत्रों में जहां वे अभी भी पढ़ रहे हैं या पढ़ाई पूरी कर चुके हैं सबने सर्वसम्मति से कहा कि शादी की उम्र 22 से 23 साल होनी चाहिए. सभी धर्मों के सदस्यों की एक ही राय थी कि शादी की उम्र को बढ़ाया जाना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि देश में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर काफी लंबे समय से बहस होती रही है. आजादी से पहले बाल विवाह प्रथा को रोकने के लिए देश में अलग-अलग न्यूनतम उम्र तय की गई. 1927 में शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक राय साहेब हरबिलास सारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया. विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था. उसके बाद 1929 में जो कानून बना उसे सारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है. फिर 1978 में इस कानून में संशोधन कर लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई. अब फिर एक बार यह कानून बदलाव की प्रक्रिया में है.