Atmanirbhar Bharat: पहाड़िया जनजाति की महिलाएं पत्ता कारोबार कर बन रहीं हैं आत्मनिर्भर
Atmanirbhar Bharat (Photo Credits: Twitter)

नई दिल्ली: सरकार (Government) के प्रयासों से देश में तेज गति से सामाजिक और आर्थिक बदलाव हो रहा है, जिससे आधी आबादी भी लाभान्वित हो रही है. झारखंड में कुछ इसी तरह के आंकाक्षी जिले की महिलाएं आत्मनिर्भर (Atmanirbhar) बन रही है. पाकुड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों की आदिवासी और आदिम जनजाति पहाड़ी महिलाओं मे कोरोना काल में पत्ता प्लेट कारोबार को आत्मनिर्भर बनने का जरिया बनाया. Atmanirbhar Bharat: पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में मांगा वैज्ञानिकों का सहयोग

पत्ता प्लेट बनाने से जीवन स्तर में आया बदलाव

ये महिलाएं, जंगलों से साल का पत्ता संग्रह कर, उन पत्तों से प्लेट बना कर साप्ताहिक हाट बाजारों के अलावा होटलों में बेच कर अच्छी आमदनी कर रही हैं. इस कारोबार से सैकड़ों ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हुई हैं, इससे न केवल इनके जीवन स्तर में बदलाव आया है बल्कि इनके बच्चों की परवरिश में भी पहले से अधिक बेहतरी आई है.

पहले होती थी केवल पत्तों की बिक्री

गौरतलब है कि संथाल परगना प्रमंडल के पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा और अमड़ापाड़ा प्रखंड के पहाड़ों पर साल के पेड़ बड़े पैमाने पर मौदूज हैं. कुछ साल पहले तक बाहरी कारोबारी स्थानीय लोगों से साल के पत्ते बड़े सस्ते में खरीद कर बड़े पैमाने पर मुनाफा कमाते थे.

खुद पत्ता प्लेट बना कर बन रही आत्मनिर्भरता

पत्ता प्लेट के कारोबार की संभावना देखकर ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जेएसएलपीएस के माध्यम से महिलाओं का समूह बना कर उन्हें पत्ता प्लेट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिसके बाद महिलाओं ने खुद पत्ता प्लेट बना कर इन्हें बाजारों में बेच कर आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी.

कोविड के दौरान मनरेगा के अलावा ग्रामीण महिलाओं के स्वरोजगार से जोड़ने के लिए क्लस्टर चिन्हित किए गए हैं. उन्होंने बताया कि कुछ महिला समूहों को पत्ता प्लेट बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही, उन्हें मशीन और आर्थिक रूप से भी मदद दी गई ताकि वो अपने कारोबार को आगे बढ़ा कर स्वावलंबी बन सकें.

उत्पादन बढ़ाने के लिए दी जा रही सलाह

इस बारे में पाकुड़ के उपायुक्त कुलदीप चौधरी कहते हैं कि जो भी महिलाएं इस कारोबार से जुड़ी हुई हैं, उनकी पहचान कर उन्हें और मशवरे प्रदान करके और बेहतर रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं. इसके लिए संबंधित प्रखंड विकास पदाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं, कि जितने प्रकार के सामूहिक इस तरह के कार्यक्रम होते हैं, उनके ग्रुप को सप्लाई आसानी से पहुंच सके ताकि प्रोडक्शन आसानी हो सके.

महिलाओं की इन कोशिशों से जाहिर है कि दुर्गम पहाड़ों पर जंगलों में निवास करने वाली आधीआबादी ने दिखा दिया है कि अवसर मिले तो वो भी स्वावलंबी बन कर कोरोना काल की विषण परिस्थितियों के बावजूद समाज के नव निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं.