Anitibody for Coronavirus: एंटीबॉडी पर चल रहे शोध पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ की राय
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Pixabay)

Covid-19 Pandemic: कोरोना वायरस (Coronavairus) की वैक्सीन नहीं है लेकिन दुनिया के कई देशों ने वायरस से जंग जीत ली है और उनके यहां वायरस का कोई नया केस नहीं आया. उनकी इस जीत का एक ही मूलमंत्र हैं सावधानी, सतर्कता और नियमों का पालन. भारत में भी जरूरत हैं दृढनिश्चय के साथ स्वत: नियमों का पालन करना तब तक, जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती है. लेकिन फिलहाल भारत (India) में संक्रमित मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी बन रहे हैं, जो उन्हें वायरस से लड़ने में मदद करते हैं. इसके अलावा कुछ दवाइयों पर ट्रायल चल रहा है. हांलाकि कई देशों में एटीबॉडी पर भी शोध चल रहा है कि यह कितने दिन तक लोगों में मौजूद रहते हैं.

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ मधुर यादव कहते हैं कि सभी काफी समय से सुन रहे हैं कि वैक्सीन बन रही है. लेकिन किसी भी वैक्सीन को आने में वक्त लगता है. इतनी जल्दी वैक्सीन नहीं आएगी. उसके कई फेज में ट्रायल होते हैं, उसके बाद जब यह सिद्ध हो जाता है कि वैक्‍सीन मनुष्यों पर कारगर है, तभी उसे बाजार में उतारा जाता है.

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प्रसार भारती से बातचीत में उन्होंने कहा कि जिन्हें पहले संक्रमण हो चुका है, उन्हें भी सभी नियमों का पालन करना है. साथ ही उन्होंने कहा कि कोरोना से ठीक हुए मरीजों के शरीर में बनने वाले एंटीबॉडी (antibodies) पर शोध जरूर चल रहा है. शरीर में एक बार एंटीबॉडी बनने पर व्‍यक्ति संक्रमण से कितना बचा रहता है और एक बार संक्रमित होने के बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कितने दिन रहती है, आदि पर रिसर्च चल रहा है. अभी तक ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं, जो कहें कि दोबारा संक्रमण नहीं होता. लेकिन भारत में ऐसे केस नहीं आए हैं, फिर भी सभी को सावधानी रखनी जरूरी है.

प्लाज़मा थैरपी के ट्रायल में मिल रहे सकारात्मक परिणाम

वहीं रेमडेसिवीर दवा की कंपनी ने भारत की कंपनियों से गठजोड़ किया है, यानी वायरस से संक्रमितों को रेमडेसिवीर दी जा रही है या नहीं और उन्हें कितना फायदा हो रहा है इस बारे में उन्होंने कहा कि रेमडेसिवीर को लेकर कई ट्रायल हुए हैं, जैसे पहले हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन का हुआ था. लेकिन अभी ऐसा कोई शोध नहीं आया है जिसमें इस एंटी-वायरल दवा को बहुत फायदेमंद बताया गया हो.

अभी इस दवा से इतना फायदा भी नहीं हुआ है कि नियमित प्रयोग किया जा सके. हांलाकि मरीजों को ठीक करने के लिए दवाओं के ट्रायल के साथ ही प्लाजमा थैरपी को देकर भी ट्रायल किया जा रहा है. डॉ मधुर ने बताा कि अभी प्लाज़मा थैरपी पर स्टडी चल रही है, लिहाज़ा डाटा के बिना सब कुछ बता पाना मुश्किल है. लेकिन इतना कह सकते हैं कि जिन्हें दी गई है वो मरीज ठीक हुए हैं. आने वाले समय में अगर किसी रिसर्च में सफलता मिलती है तभी कुछ कह सकते हैं.