
MP Panchayat Contract Case: मध्य प्रदेश के गुना जिले से एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है. यहां के कुछ पंचायतों में ऐसा भ्रष्टाचार हुआ है कि जिसने प्रशासन से लेकर गांव के लोगों तक को चौंका दिया है. मामला ऐसा है कि एक महिला सरपंच ने खुद की चुनी हुई पंचायत को ही ठेके पर दे दिया, ताकि वो अपने चुनाव में लगे कर्ज को चुका सके. जी हां, आपने सही पढ़ा. सरपंची भी अब ठेके पर चलने लगी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुना जिले की करोद पंचायत और चाचौड़ा क्षेत्र की रामनगर पंचायत में सरपंचों ने बाकायदा एग्रीमेंट कर अपने अधिकार किसी और को सौंप दिए.
करोद पंचायत की सरपंच लक्ष्मी बाई ने 20 लाख के चुनावी खर्च को चुकाने के लिए पंचायत का संचालन पंच रणवीर कुशवाहा को सौंप दिया था. इस डील के तहत रणवीर को पंचायत से होने वाली आमदनी में से 5% कमीशन सरपंच को देना था.
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MP में सरपंच ने पंचायत को ही ठेके पर बेच डाला
गजब MP, चुनाव लड़ने का कर्ज नहीं उतर रहा था तो महिला सरपंच ने अपने ग्राम पंचायत को ही बेच दिया ! MP Tak#MadhyaPradesh pic.twitter.com/XRhprc2gFV
— MP Tak (@MPTakOfficial) May 21, 2025
सरपंच लक्ष्मीबाई और मुन्नीबाई हुईं सस्पेंड
इस एग्रीमेंट में यहां तक लिखा गया कि चुनाव में खर्च हुए 20 लाख रुपए की भरपाई भी पंच ही करेगा. वहीं, ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इस भ्रष्टाचार के चलते पंचायत के विकास कार्यों में कोई दिलचस्पी नहीं ली गई. ना ही आज तक खड़ंजा डाला गया, जबकि बारिश सिर पर है. जब यह मामला प्रशासन के सामने आया तो तुरंत जांच शुरू हुई. गड़बड़ी साबित होने पर पंच रणवीर कुशवाहा पर फ्रॉड की धाराओं में केस दर्ज हुआ और सरपंच लक्ष्मीबाई को पद से हटा दिया गया.
रामनगर पंचायत में भी इसी तरह की सिचुएशन सामने आई. यहां की सरपंच मुन्नीबाई सहरिया ने सालाना 1 लाख रुपए में सरपंची का ठेका रामसेवक मीणा को दे दिया था. वहां भी एग्रीमेंट स्टांप पेपर पर हुआ था. भले ही वहां कमीशन का जिक्र नहीं है, लेकिन सरपंच ने साफ लिखा कि उसे पंचायत पर कोई अधिकार नहीं रहेगा.
पर्दे के पीछे से पंचायत चला रहे दबंग
यह घटनाएं दिखाती हैं कि कैसे आरक्षित वर्ग की सीटों पर कुछ दबंग लोग चुनाव लड़वाकर पर्दे के पीछे से पंचायत चलाते हैं. वे चुनाव का पूरा खर्च उठाते हैं और फिर सरपंच के नाम पर सारे अधिकार खुद रखते हैं. जैसे चेकबुक, सरकारी मुहर और मोबाइल नंबर तक. इन दोनों ही मामलों में आरक्षित वर्ग की महिलाओं को सरपंच चुना गया था, लेकिन असली ताकत किसी और के पास थी.
पूरे सिस्टम पर उठा सवाल
अब दोनों सरपंचों को हटा दिया गया है, और प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए जांच आगे बढ़ा दी है. ये मामला सिर्फ गुना जिले का नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल उठाता है कि चुनाव लड़ने और जीतने के बाद भी पंचायतें कैसे बिक रही हैं.