
Kapkapiii Review: हम सभी की ज़िंदगी में एक ऐसा दोस्ती वाला ग्रुप जरूर होता है पैसे नहीं होते, प्लान नहीं होते, लेकिन फिर भी हर दिन कुछ नया तमाशा चलता रहता है. ऐसी ही बेतरतीब, हंसी-मजाक और पागलपंती से भरी कहानी लेकर आई है फिल्म कंपकंपी, जहां दोस्तों का मस्तमौला ग्रुप एक दिन गलती से भूतनी 'अनामिका' को बुला लेता है, वो भी कैरम बोर्ड से बने ऊइजा बोर्ड के ज़रिए. इस फिल्म में डर है, कॉमेडी है और हर उस इंसान की याद है जिसने अपनी थर्टीज़ में दोस्तों के साथ बजट-फ्रेंडली मस्ती की हो.
हर ग्रुप में कुछ फ्रीलोडर दोस्त होते हैं ना पैसे, ना प्लान, लेकिन हर दिन कुछ नया ड्रामा. फिल्म में ऐसे ही छह बेरोज़गार दोस्त एक किराए के घर में रहते हैं. इनका रूटीन टाइमपास, मस्ती और बहाने हैं. मनु (श्रेयस तलपड़े) खुद को लीडर समझता है, लेकिन कोई उसकी सुनता नहीं. नान्कू चायवाला है लेकिन बातें फिलॉसफर जैसी है. निरूप के पास डिग्री है, नौकरी नहीं. हालांकि, इन सब के बीच रिविन ही एक शख्स है जो की सैलरी उठा रहा होता है. बोरियत मिटाने के लिए मनु अपने जुगाड़ू दिमाग से कैरम बोर्ड को ऊइजा बोर्ड बना देता है. शुरू में सब हंसी-मजाक में लेते हैं, मनगढ़ंत भूत अनामिका और नकली सवाल-जवाब. लेकिन मस्ती धीरे-धीरे डर में बदलती है, ग्लास खुद-ब-खुद खिसकता है, और छिपे हुए राज़ खुलने लगते हैं.
कहानी में तुषार कपूर की एंट्री होती है, कबीर के रोल में, जो कुछ दिन के लिए यहां रहने आता है. लेकिन वो जल्दी ही समझ जाता है कि ये घर नहीं, बल्कि पगलों का भूतिया सर्कस है. तुषार और भूतनी 'अनामिका' के बीच के सीन इतने फनी हैं कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे.
देखें 'कंपकंपी' ट्रेलर:
ऊपर की फ्लोर वाली लड़कियां (सिद्धि इडनानी और सोनिया राठी) लड़कों के उलट शांत लेकिन क्विर्की हैं. इन्हें सिर्फ़ ‘हीरो की मोहब्बत’ के लिए नहीं रखा गया है, बल्कि उनका भी पागलपन और कॉमिक टाइमिंग है. खासकर सिद्धि, जो पहले ‘द केरला स्टोरी’ जैसी सीरियस फिल्म में थीं, यहां हंसी से भरपूर अंदाज़ में चौंकाती हैं.
संगीथ सिवन, जिन्होंने ‘क्या कूल हैं हम’ और ‘यमला पगला दीवाना 2’ बनाई थी, यहां भी वही बिंदास एंटरटेनमेंट लाए हैं. अफसोस, ये उनकी आखिरी फिल्म है , लेकिन उन्होंने जाते-जाते जमकर हंसाया है.
गोलमाल फेम तुषार और श्रेयस की जोड़ी फिर से स्क्रीन पर है और इनकी कॉमिक टाइमिंग अभी भी उतनी ही असरदार है. कुमार प्रियदर्शी और सौरभ आनंद के डायलॉग्स तगड़े हैं, खासकर वो जो आम ज़िंदगी की सिचुएशनों में से हंसी निकालते हैं. जोक्स वैसे नहीं हैं कि बैकग्राउंड में हंसी बजानी पड़े.
छोटी मोटी खामियों के बावजूद यह फिल्म एंटरटेन करने में सफल रहती है. डर है, लेकिन हल्का-फुल्का. ये फिल्म नींद उड़ाने नहीं, दोस्तों के साथ हंसने के लिए है. फिल्म का हर किरदार आपको आपकी लाइफ के किसी दोस्त की याद दिलाएगा. ऐसे में इस फिल्म को इसकी मजेदार कहानी, शानदार डायरेक्शन, कमाल की परफॉर्मेंस की वजह से मिस नहीं किया जा सकता है. फिल्म को 5 में से 3 स्टार.