
Ground Zero Review: कुछ कहानियां ज़रूरी होती हैं... सिर्फ देखने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने के लिए. 'ग्राउंड ज़ीरो' भी उन्हीं में से एक है, जो न सिर्फ एक जवान की ज़िंदगी का संघर्ष दिखाती है बल्कि कश्मीर की ज़मीनी सच्चाई से दर्शकों को रूबरू कराती है. फिल्म की कहानी शुरू होती है कश्मीर में तैनात बीएसएफ जवानों पर आतंकी हमले से, जिसमें एक के बाद एक 70 जवान शहीद हो जाते हैं. इस तबाही के पीछे है आतंकवादी 'गाज़ी', जो पहले संसद और अक्षरधाम जैसे हमलों को अंजाम दे चुका है.
हालात बेकाबू हो चुके हैं और ऐसे में अफसर संजीव शर्मा को याद आता है नरेंद्र नाथ दुबे का नाम – एक ईमानदार, निडर और तेज़ जवान, जिसकी भूमिका में हैं इमरान हाशमी.
इमरान का किरदार नरेंद्र एकदम दमदार है – न कोई मेलोड्रामा, न दिखावटी हीरोइज़्म. उनकी आंखों में जो दर्द और गुस्सा है, वो सीधे दिल को छूता है. फिल्म में जब उनका खबरी जिसे वे छोटा भाई मानते थे हुसैन शहीद हो जाता है, वह सीन दर्शकों की आंखें नम कर देता है. खास तौर पर एक डायलॉग – "यह कश्मीर है, यहां कुछ भी श्योर या अनश्योर नहीं होता... सिर्फ मौका होता है" – फिल्म का सार बयां करता है.
देखें 'ग्राउंड जीरो' ट्रेलर:
सहायक भूमिकाओं में मुकेश तिवारी, जोया हुसैन और साई तम्हणकर मौजूद हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले उन्हें पर्याप्त स्पेस नहीं देता. सो लेन दे और फतह जैसे गाने मूड को बेहतर बनाते हैं. हालांकि फिल्म की एडिटिंग और स्क्रीनप्ले में कई जगह रुकावट नजर आती है – कुछ सीन अचानक कट हो जाते हैं और कुछ इमोशनल मोमेंट्स पूरी तरह कैप्चर नहीं हो पाते.
फिल्म का सबसे असरदार पहलू है इसकी सच्चाई से जुड़ाव. निर्देशक तेजस देउसकर ने फिल्म को रियल लोकेशन्स पर शूट किया है, और हाल ही में जो पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, उसके बाद यह फिल्म और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती है. मीडिया स्क्रीनिंग के बाद जब निर्देशक से बातचीत हुई तो उन्होंने कहा – "कुछ दिन पहले हमारी फिल्म का रेड कारपेट था कश्मीर में, और अब वहां लाशें पड़ी हैं... It's disturbing." उनकी आंखों में गुस्सा और दर्द दोनों था.
इंटरनेट पर वायरल हुए उस वीडियो का जिक्र करना ज़रूरी है जिसमें एक बच्चा एम्बुलेंस में रोते हुए कहता है – “मुझे पापा के पास जाना है”, लेकिन उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं थे. यही सच्चाई है आज के कश्मीर की – जहां आतंकवाद सिर्फ गोली और बारूद नहीं, बल्कि जज़्बातों को भी कुचल देता है.
ग्राउंड ज़ीरो परफेक्ट फिल्म नहीं है, लेकिन यह जरूरी फिल्म है. यह आपको सोचने पर मजबूर करती है कि जब अपने ही पत्थर उठाएं, तो दुश्मन कौन है? इमरान हाशमी का किरदार न सिर्फ स्क्रीन पर जिंदा लगता है, बल्कि आपको असलियत का आईना भी दिखाता है. फिल्म का मकसद सिर्फ एंटरटेन करना नहीं, बल्कि झकझोरना है – और वह इसमें काफी हद तक सफल रहती है.
अगर आप एक गंभीर, देशभक्ति और सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म देखना चाहते हैं, जिसमें अभिनय, सच्चाई और भावना तीनों हो – तो ग्राउंड ज़ीरो जरूर देखें. यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक दस्तावेज़ है – हमारी मिट्टी की सच्चाई का.