कोयला आयात के लिए संप्रग की नीतियां जिम्मेदार, केंद्र आयात कम करने के लिए प्रयासरत: सरकार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: Wikimedia Commons)

नयी दिल्ली, 28 जुलाई : कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी (Prahlad Joshi) ने देश में कोयले का प्रचुर भंडार होने के बाद भी इसके आयात के लिए पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए बुधवार को कहा कि सरकार देश में कोयला आयात को कम करने के प्रयास कर रही है और तीन-चार वर्षों में धीरे-धीरे कोयला आयात बंद होने की संभावना है. जोशी ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा कि सरकार ने एक कोयला आयात निगरानी तंत्र भी बनाया है जिससे देश में कोयले के आयात को कम किया जा सके. उन्होंने कांग्रेस समेत विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि आज देश में लगभग 7.9 करोड़ टन कोयला उपलब्ध है जो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार है. जोशी ने कहा कि इसके बावजूद कोयले का आयात करना पड़ता था, उसकी वजह पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत संप्रग सरकार की गलत नीतियां थीं.

जोशी ने कहा कि पहले कोयला खदान के आवंटन का विशेषाधिकार कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती सरकार के पास था. पहले राजनीतिक दलों की चिट्ठी के आधार पर कोयला खनन का आवंटन हो जाता था. कोयला मंत्री ने कहा कि सरकार कोयला आयात पूरी तरह कम करने में लगी हुई है. वाणिज्यिक खनन शुरू कर दिया है और कोल इंडिया की क्षमताएं बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक खनन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में जो काम किया गया है, वह सभी के सामने है. उन्होंने कहा कि कोल इंडिया के अधिकारियों और कर्मचारियों ने कोरोना वायरस महामारी में भी रिकॉर्ड उत्पादन करके आयात कम करने का प्रयास किया है. यह भी पढ़ें : Jharkhand: झारखंड में महिलाओं को गरिमापूर्ण जीवन देगी ‘गरिमा परियोजना’

उन्होंने पेगासस और केंद्रीय कृषि कानूनों के मुद्दे पर शोर-शराबा कर रहे विपक्षी सदस्यों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि प्रश्नकाल सदस्यो का अधिकार है, लेकिन हंगामा कर रहे सदस्य इसका हनन कर रहे हैं. भाजपा के निशिकांत दुबे के पूरक प्रश्न के उत्तर में जोशी ने कहा कि कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण के मामलों में राज्य सरकारों को सहयोग करना होगा. उन्होंने झारखंड के संबंध में पूछे गये एक पूरक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘‘कोयला या अन्य खनिजों का उत्पादन होने पर पूरा राजस्व राज्यों को मिलता है. फिर भी कुछ राज्य सरकारें अपेक्षाजनक सहयोग नहीं करती हैं.’