नयी दिल्ली, 1 दिसंबर : कांग्रेस ने एक खबर का हवाला देते हुए शुक्रवार को दावा किया कि ‘स्वच्छ भारत मिशन’ अपनी स्थिति में बरकरार नहीं रह सका है और वर्ष 2018 के बाद से शौचालयों के उपयोग में निरंतर गिरावट आ रही है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि देश में शौचालयों के उपयोग और स्वच्छता एक खुला एवं पारदर्शी ऑडिट कराए जाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में सरकार बनने के बाद ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की गई थी जिसके तहत बड़े पैमाने पर शौचालयों का निर्माण करवाया गया. रमेश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए जिस खबर का हवाला दिया उसमें कहा गया है कि विश्व बैंक के दस्तावेज में भारत में शौचालयों के उपयोग में गिरावट पर चिंता जताई गई थी, लेकिन ‘दबाव’ के चलते उसने इन दस्तावेज को वापस ले लिया.
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सितंबर 2011 में शुरू किए गए ‘निर्मल भारत अभियान’ को दोबारा नए सिरे से पेश करते हुए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के रूप में सामने लाया गया. ‘निर्मल भारत अभियान’ ने प्रत्येक ग्राम पंचायत को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम शुरू किए थे. इसने ट्रेन में बायोटॉयलेट के उपयोग को लोकप्रिय बनाना शुरू कर दिया था. विद्या बालन जैसे ‘स्वच्छता दूत’ जोड़े गए थे. नए-नए नारों को लोकप्रिय बनाया गया था और स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा समवर्ती मूल्यांकन को प्रोत्साहित किया गया था. उन्होंने कहा, ‘‘अब विश्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि इतने प्रचार के बाद शुरू किया गया ‘स्वच्छ भारत मिशन’ कायम नहीं रह सका है. भारत में 2018 से शौचालयों के उपयोग में गिरावट आ रही है, यह गिरावट एससी और एसटी समुदायों के बीच सबसे अधिक केंद्रित है.’’ रमेश ने दावा किया कि शुरुआती धूमधाम के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अन्य योजनाओं, सुर्खियों और आयोजनों की ओर बढ़ गए हैं. यह भी पढ़ें : गुजरात के आईपीएस अधिकारी की पत्नी अहमदाबाद में अपने आवास पर मृत मिलीं
उन्होंने कहा, ‘‘स्वच्छता के लिए कर्मचारी कम कर दिए गए हैं और भुगतान में देरी हो रही है. दरअसल, भारत को खुले में शौच से मुक्त कराने के बड़े-बड़े दावों से कोसों दूर, 25 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण परिवार अभी भी नियमित रूप से शौचालय का उपयोग नहीं करते हैं. ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि विश्व बैंक को मोदी सरकार से ‘काफी नाराजगी’ का सामना करना पड़ा और इन दस्तावेज को वापस लेना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘‘आंकड़ों को दबाने और खुले में शौच पर जीत की घोषणा करने के बजाय, बजट में कटौती को खत्म करने के साथ-साथ भारत में शौचालय के उपयोग और स्वच्छता का एक खुला और पारदर्शी ऑडिट कराने की आवश्यकता है. यह ऐसे समय में और भी महत्वपूर्ण है जब भारत 2014 के बाद से एनीमिया एवं बाल कुपोषण में तेज वृद्धि के साथ कई महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सूचकांकों में पिछड़ रहा है.’’