आलो (अरुणाचल), 29 नवंबर : अरुणाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों के बीच बसे दारका गांव में 62 वर्षीय मेदम एते अपनी विरासत और तिरंगे के प्रति अटूट प्रेम के बारे में गर्व के साथ बात करते हैं. हालांकि, जब देश के अन्य स्थानों पर कोई व्यक्ति अनजाने में उन्हें या उनके गांव के लोगों को चीनी कह देता है तब उन्हें बहुत अधिक दुख होता है. मेदम एते कहते हैं, ‘‘हम भारतीय हैं और हमें भारतीय होने पर गर्व है. जब देश के कुछ हिस्सों में लोग हमें चीनी कहते हैं, तब हमें बहुत बुरा लगता है. अगर चीन, भारत में घुसता है तो हम सबसे पहले उनसे लड़ेंगे.’’
मेदम एते, अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग जिले के सुदूर आलो कस्बे में तीन हजार की आबादी वाले दारका के गांव बुद्धा (ग्राम प्रधान) हैं. ब्रिटिश काल के दौरान गांव बुद्धों की व्यवस्था की गई और यह राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सबसे महत्वपूर्ण ग्राम-स्तरीय पदाधिकारी होता है. गांव में कानून और व्यवस्था बनाए रखने तथा नागरिक विवादों के समाधान जैसे प्रशासनिक कार्यों को देखना इसकी जिम्मेदारी होती है. देश के किसी भी अन्य नागरिक की तरह मेदम एते का भी कहना है कि हर कोई बेहतर सड़कें, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा चाहता है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद सरकार की कार्यशैली बदल गई है. उन्होंने कहा, ‘‘ अब हमें सरकार से विकास परियोजनाओं के लिए अधिक धन मिलता है.’’ यह भी पढ़ें : महाराष्ट्र की नयी सरकार के गठन को लेकर दिल्ली के बाद अब मुंबई पर टिकीं निगाहें
दारका गांव के सरपंच केंबा एते का कहना है कि केंद्र सरकार के सहयोग और भारतीय सेना की मदद से उनके गांव में कई विकास कार्य हो रहे हैं.
केम्बा एते कहते हैं, "हमें विभिन्न कार्यों के लिए मनरेगा के तहत धन मिल रहा है. लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त राशन मिल रहा है. गांवों में सड़कें बन गई हैं." उन्होंने यह भी कहा कि सेना के ग्रामीणों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं. उनका कहना था, "कठिन समय में वे हमेशा हमारे साथ खड़े रहते हैं. चाहे स्कूलों का जीर्णोद्धार हो या सामुदायिक हॉल का निर्माण. उन्होंने विभिन्न विकास कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है."