नयी दिल्ली, नौ दिसंबर दिल्ली की एक अदालत ने 2016 में पुलिस अधिकारियों पर गोलीबारी संबंधी मामले के एक आरोपी को बरी करते हुए कहा है कि दो आधिकारिक गवाहों के बयानों में कई ‘‘उल्लेखनीय विसंगतियां और विरोधाभास’’ हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल पाहुजा ने कहा कि लिखित शिकायत दर्ज करने की अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण मामले में अपराधों का संज्ञान ‘‘प्रभावित’’ हुआ।
अदालत मोहम्मद अकरम के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी। अकरम के साथी पर 25 अगस्त 2016 को गश्त कर रहे पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी करने का आरोप है। मामले का सह-आरोपी फरार है।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, गश्त कर रहे पुलिसकर्मियों के कहने पर अकरम और अन्य ने अपनी मोटरसाइकिल नहीं रोकी। आरोपी के साथ वाहन पर पीछे बैठे उसके साथी ने एक देसी पिस्तौल निकाली और भागने की कोशिश के दौरान पुलिसकर्मियों पर गोली चला दी।
अदालत ने गत शनिवार को सुनाए अपने फैसले में कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष ने अपना मामला साबित करने के लिए दो गवाहों हेड कांस्टेबल अवनीश कुमार और निरीक्षक दुर्गा दास से पूछताछ की....उपर्युक्त गवाहों की गवाही में कई विसंगतियों और विरोधाभास का पता चलता है जो उनके बयानों को अत्यंत अविश्वसनीय और संदिग्ध बनाता है।’’
साकेत पुलिस थाने ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
अदालत ने कहा कि जिरह के दौरान कुमार मोटरसाइकिल की पंजीकरण संख्या नहीं बता पाए और न ही उन्हें यह याद है कि दोपहिया वाहन का मॉडल या रंग क्या था।
उसने कहा, ‘‘सबसे अहम बात यह है कि कुमार ने कहा कि घटनास्थल से भागे आरोपियों के बारे में वायरलेस पर कोई संदेश नहीं भेजा गया।’’
अदालत ने कहा कि इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
अकरम पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 307 (हत्या का प्रयास) और 186 (सरकारी कर्मचारी के कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालना) सहित विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे।
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