नयी दिल्ली, 10 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए पक्षकारों को निर्देश दिया कि वे लिंग आधारित हिंसा को रोकने तथा अस्पतालों में चिकित्सकों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार करने के संबंध में अपनी सिफारिशें और सुझाव उसके द्वारा गठित राष्ट्रीय कार्यबल (एनटीएफ) के साथ साझा करें।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि एनटीएफ मंगलवार से 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट उसके विचारार्थ दाखिल करेगा।
शीर्ष अदालत ने कोलकाता के आरजी कर चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में एक महिला प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या की घटना के मद्देनजर चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार करने हेतु 20 अगस्त को एनटीएफ का गठन किया था।
प्रधान न्यायाधीश ने मंगलवार को स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगली सुनवाई 17 मार्च, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में की जाएगी, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि यदि दुष्कर्म एवं हत्या मामले की सुनवाई में देरी होती है तो पक्षकार पहले सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं।
एनटीएफ ने नवंबर में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए एक अलग केंद्रीय कानून की आवश्यकता नहीं है। यह रिपोर्ट केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे का हिस्सा थी।
इसके साथ ही, एनटीएफ ने कहा कि राज्य के कानूनों में भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत गंभीर अपराधों के अलावा दिन-प्रतिदिन के छोटे अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं।
एनटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की थी। इसमें कहा गया कि 24 राज्यों ने स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के विरुद्ध हिंसा से निपटने के लिए पहले ही कानून बना लिए हैं, जिसके तहत ‘‘स्वास्थ्य देखभाल संस्थान’’ और ‘‘चिकित्सा पेशेवर’’ शब्दों को भी परिभाषित किया गया है।
इसमें कहा गया है कि दो और राज्यों ने इस संबंध में विधेयक पेश किये हैं।
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