जरुरी जानकारी | ग्रामीण गरीबी वित्त वर्ष 2023-24 में घटकर 4.86 प्रतिशत पर आईः एसबीआई रिसर्च

नयी दिल्ली, तीन जनवरी गांवों में गरीबी घटी है। मुख्य रूप से सरकारी सहायता कार्यक्रमों के प्रभावों के कारण ग्रामीण गरीबी वित्त वर्ष 2023-24 में घटकर 4.86 प्रतिशत रह गई जो 2011-12 में 25.7 प्रतिशत थी। एसबीआई रिसर्च की शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया।

यह रिपोर्ट कहती है कि शहरी इलाकों की गरीबी भी मार्च, 2024 में समाप्त वित्त वर्ष में घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई जबकि वित्त वर्ष 2011-12 में यह 13.7 प्रतिशत पर थी।

वित्त वर्ष 2023-24 में नई अनुमानित गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों में 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 1,944 रुपये है।

एसबीआई रिसर्च ने उपभोग व्यय सर्वेक्षण पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि ग्रामीण गरीबी अनुपात में तेज गिरावट महत्वपूर्ण सरकारी सहायता के साथ उपभोग वृद्धि का नतीजा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘यह समर्थन अहम है क्योंकि हम पाते हैं कि खाद्य कीमतों में बदलाव का न केवल खाद्य व्यय पर बल्कि सामान्य रूप से समग्र खर्च पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।"

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की तरफ से हाल में जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से पता चला है कि अगस्त 2023-जुलाई 2024 के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उपभोग असमानता एक साल पहले की तुलना में कम हुई है।

एसबीआई रिसर्च के मुताबिक, उपभोग व्यय सर्वेक्षण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी उल्लेखनीय गिरावट के साथ 4.86 प्रतिशत (वित्त वर्ष 2022-23 में 7.2 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2011-12 में 25.7 प्रतिशत) रही। वहीं शहरी गरीबी 4.09 प्रतिशत (वित्त वर्ष 2022-23 में 4.6 प्रतिशत और 2011-12 में 13.7 प्रतिशत) होने का अनुमान है।

हालांकि शोध रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है कि 2021 की जनगणना पूरी होने और ग्रामीण-शहरी आबादी का नया आंकड़ा प्रकाशित होने के बाद इन संख्याओं में मामूली संशोधन हो सकता है।

रिपोर्ट कहती है, "हमारा मानना ​​है कि शहरी गरीबी में और भी गिरावट आ सकती है। भारत में गरीबी दर अब 4.0-4.5 प्रतिशत के बीच रह सकती है जबकि अत्यधिक गरीबी का अस्तित्व न के बराबर होगा।"

इसमें कहा गया है कि बेहतर होता भौतिक बुनियादी ढांचा गांवों में आवाजाही में एक नई कहानी लिख रहा है। यह एक बड़ा कारण है कि न केवल ग्रामीण और शहरी के बीच बल्कि गांवों के अंदर भी आय अंतर कम हुआ है।

रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति उच्च आय वाले राज्यों की तुलना में कम आय वाले राज्यों में खपत की मांग को अधिक कम कर देती है।

इसमें यह भी कहा गया है कि ज्यादातर उच्च आय वाले राज्यों में बचत दर राष्ट्रीय औसत (31 प्रतिशत) से अधिक है।

रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश और बिहार में बचत दर कम है जिसका कारण संभवतः आबादी के एक बड़े हिस्से का राज्य से बाहर निवास करना है।

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