नयी दिल्ली, 23 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ कई अपीलों बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली जिसमें तमिलनाडु में सबसे पिछड़े समुदाय (एमबीसी) वन्नियार को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में प्रदान किये गए 10.5 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया था।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने पक्षों से लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया। इस मामले में न्यायालय फैसला बाद में सुनायेगा।
शीर्ष अदालत ने पहले इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उसने प्रस्तुत निर्णयों का अध्ययन किया है और उसका विचार है कि इस मुद्दे पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
शीर्ष अदालत तमिलनाडु राज्य, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) एवं अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने एक नवंबर, 2021 को वन्नियार को प्रदान किए गए आरक्षण को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।
तमिलनाडु विधानसभा ने फरवरी में वह विधेयक पारित किया था जिसमें वन्नियारों के लिए 10.5 प्रतिशत का आंतरिक आरक्षण प्रदान किया गया था, जिसके बाद द्रमुक सरकार ने जुलाई 2021 में इसके कार्यान्वयन के लिए एक आदेश जारी किया था।
इसने जातियों को पुनर्समूहित करके एमबीसी और अधिसूचित समुदायों के लिए कुल 20 प्रतिशत आरक्षण को तीन अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित कर दिया था और वन्नियारों के लिए दस प्रतिशत से अधिक उप-कोटा प्रदान किया था, जिसे पहले वन्नियाकुल क्षत्रियों के रूप में जाना जाता था।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘क्या राज्य सरकार को आंतरिक आरक्षण करने का अधिकार है? संविधान ने पर्याप्त स्पष्टीकरण दिया है। आंतरिक आरक्षण प्रदान करने वाला विधान रद्द कर दिया गया है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकार ऐसा कानून नहीं ला सकती है। संविधान में इस बारे में स्थिति स्पष्ट की गयी है।
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